जगत में ज्ञान का उजास फैलाने वाली, वाणी की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती के आराधना का पावन पर्व, बसंत पंचमी, इस वर्ष 14 फरवरी को बुधवार के दिन मनाया जाएगा। माघ शुक्ल पंचमी की सुहावनी सुबह, जब वसंत की हवा खुशबू बिखेरते हुए आ रही होगी, उसी शुभ बेला में रेवती नक्षत्र और अनेक शुभ योगों का संगम होगा। यह संयोग, इस पर्व को और भी पवित्र एवं फलदायी बनाता है।
सरस्वती पूजा केवल विद्यार्थियों के लिए ही नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है जो अपने जीवन में ज्ञान का दीप जलाना चाहता है। कलाकारों के लिए यह सृजनात्मकता को ऊर्जा देने का, लेखकों के लिए शब्दों में शक्ति भरने का, और आध्यात्मिक साधकों के लिए बुद्धि के द्वार खोलने का पर्व है।
इस दिन सुबह से ही वातावरण में एक उत्साहपूर्ण भक्ति का संचार होता है। घर-घर में माँ सरस्वती की प्रतिमाएं सजाई जाती हैं, पीले वस्त्रों से उनका श्रृंगार होता है, और पुष्पों की सुगंध वातावरण को पवित्र करती है। विद्यालयों में ज्ञान की देवी के समक्ष विद्यार्थी पूजा अर्चन करते हैं। कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए माँ सरस्वती को अर्पित करते हैं। इस उत्सव में भक्ति के साथ-साथ कला और संस्कृति का संगम भी देखने को मिलता है।
परंपरा के अनुसार, नवजात शिशुओं का भी इसी दिन अक्षरारंभ होता है। मां सरस्वती की कृपा, उनके जीवन में ज्ञान के पथ का शुभारंभ करती है। उम्मीद की किरणें लेकर आता वसंत ऋतु भी इसी दिन से अपना प्रभात दिखाता है। प्रकृति नए उत्साह और सृजनात्मकता के साथ जागृत होती है।
सरस्वती पूजा के शुभ मुहूर्तों को देखते हुए, लाभ और अमृत मुहूर्त सुबह 6:28 बजे से शुरू होकर 9:15 बजे तक विद्यमान रहेंगे। इस दौरान की गई पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है। विद्वानों का मानना है कि शुभ योग मुहूर्त, सुबह 10:40 बजे से दोपहर 12:04 बजे तक, साधना और मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ समय है। इसके अलावा, अभिजित मुहूर्त, जो दोपहर 11:41 बजे से 12:26 बजे तक रहेगा, किसी भी शुभ कार्य के लिए शुभता का प्रतीक है।
इस पवित्र अवसर पर पीले वस्त्र धारण करना भी एक खास परंपरा है। पीला रंग गुरु ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है, जो ज्ञान, धन और शुभता का कारक माना जाता है। इस रंग को धारण करना ज्ञान की पवित्रता, विद्या के क्षेत्र में सफलता, और जीवन में समृद्धि के लिए शुभ माना जाता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, बसंत पंचमी के दिन मंत्र दीक्षा, नवजात शिशुओं का अक्षरारंभ, नए रिश्तों का आरंभ, विद्यारंभ और नए कला का शुरुआत करना अत्यंत शुभ माना गया है। यह दिन वास्तव में एक नई शुरुआत का प्रतीक है। ज्ञान और सृजनात्मकता के साथ जीवन के नए अध्याय का शुभारंभ करने का पवित्र अवसर है।
शुभ मुहूर्त:
- पंचमी तिथि: 13 फरवरी, दोपहर 2:41 बजे से 14 फरवरी, दोपहर 12:09 बजे तक
- लाभ और अमृत मुहूर्त: 14 फरवरी, सुबह 6:28 बजे से 9:15 बजे तक
- शुभ योग मुहूर्त: 14 फरवरी, सुबह 10:40 बजे से दोपहर 12:04 बजे तक
- अभिजित मुहूर्त: 14 फरवरी, दोपहर 11:41 बजे से 12:26 बजे तक
- चर मुहूर्त: 14 फरवरी, शाम 2:52 बजे से 4:17 बजे तक
बसंत पंचमी का महत्व:
- यह दिन ज्ञान और कला की देवी माँ सरस्वती की पूजा के लिए समर्पित है।
- इस दिन विद्यार्थी, कलाकार और लेखक माँ सरस्वती से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
- नवजात शिशुओं का अक्षरारंभ संस्कार भी इसी दिन किया जाता है।
- यह दिन वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है।
पूजा विधि:
- माँ सरस्वती की मूर्ति या चित्र को घर में स्थापित करें।
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- देवी को फल, फूल, मिठाई और दीप अर्पित करें।
- सरस्वती स्तोत्र का पाठ करें।
- आरती करें।