लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चल रही बहस (Lok Sabha Debate) उस समय अचानक तीखी हो गई, जब बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने मतदाता सूची में फर्जी नामों के प्रवेश का आरोप लगाते हुए बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठा दिया। बिहार के प्राणपुर का उदाहरण देते हुए दुबे ने दावा किया कि 70 वर्षीय व्यक्ति तजीमुल ने पहली बार मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की कोशिश की, जिस पर चुनाव आयोग ने आपत्ति जताई। इस उदाहरण को पेश करते हुए उन्होंने सवाल खड़ा किया कि अगर दशकों तक वोटर सूची में न रहने वाले लोग अचानक नाम जुड़वा रहे हैं, तो क्या देश और बिहार के चुनाव विदेशी वोटरों के सहारे तय होंगे?
दुबे ने सदन में जोर देते हुए कहा कि तजीमुल की उम्र 70 वर्ष है और इतने वर्षों में वह कभी मतदाता नहीं रहा, लेकिन SIR प्रक्रिया के दौरान उसका नाम जोड़ने की कोशिश हुई। जैसे ही दुबे ने यह घटना साझा की, पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव ने इस पर प्रतिक्रिया देने की कोशिश की, जिसके बाद सदन में तनावपूर्ण स्थिति बन गई। दुबे ने पप्पू यादव की बात बीच में रोकते हुए कहा कि वे तथ्य बता रहे हैं और उन्हें बीच में न टोका जाए। यह क्षण बहस को और अधिक गर्म कर गया और दोनों नेताओं के बीच तीखी नोंकझोंक देखी गई। उन्होंने जोर देते हुए कहा, ‘आप बैठो, आप बैठो ना, मैं नाम बता रहा हूं। 70 साल का तजीमुल है, जो अभी तक वोटर नहीं था। SIR के दौरान 70 साल में वोटर बनना चाहता था।’
निशिकांत दुबे ने इस मौके पर कांग्रेस पर भी सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि अगर इतिहास से छेड़छाड़ सीखनी हो तो कांग्रेस से बेहतर कोई गुरु नहीं। उन्होंने 1988 में राजीव गांधी द्वारा किए गए चुनावी सुधार का संदर्भ देते हुए कहा कि यह कदम 1972 में आई रिपोर्ट पर आधारित था, जिसमें मतदान आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष करने की अनुशंसा की गई थी। दुबे ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने इस महत्वपूर्ण सुधार को लागू करने में 16 साल लगा दिए, जो उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति पर सवाल खड़ा करता है।
चर्चा के अंत में दुबे ने बिहार चुनाव के आंकड़े शीट के साथ सदन को संबोधित किया। उन्होंने बताया कि कई सीटों पर एनडीए प्रत्याशी बेहद कम अंतर से जीते थे, जिससे वोटर लिस्ट की शुुद्धता का महत्व और बढ़ जाता है। उन्होंने यह भी दावा किया कि एनडीए हारने के बावजूद वोट की राजनीति नहीं करता, बल्कि देशहित की राजनीति करता है। उनके इस बयान ने सदन में चल रही बहस को एक नए राजनीतिक रंग में ढाल दिया और चुनाव सुधारों पर जारी विमर्श को और व्यापक बना दिया।






















