Madhubani Vidhansabha Seat 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की आहट तेज़ हो चुकी है और मधुबनी विधानसभा सीट पर सियासी हलचलें भी तेज होती जा रही हैं। निर्वाचन क्षेत्र संख्या 36, मधुबनी, न केवल राजनीतिक दृष्टि से अहम है बल्कि सांस्कृतिक पहचान के लिहाज से भी इसकी विशेष जगह है। मिथिला पेंटिंग के लिए विश्वविख्यात मधुबनी जिला 1972 में दरभंगा से अलग होकर अस्तित्व में आया और तब से यह सीट लगातार बिहार की राजनीति में चर्चा का केंद्र रही है। एक समय वामपंथ का गढ़ रही यह सीट अब राष्ट्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय दलों के बीच सत्ता संघर्ष का मैदान बन चुकी है।
चुनावी इतिहास
इस सीट पर पहली बार 1951 में चुनाव हुआ था और तब से यहां के मतदाता नेता के व्यक्तित्व और जातीय समीकरणों को तरजीह देते आए हैं। यही कारण है कि समय-समय पर यहां सत्ता समीकरण बदलते रहे। साल 2000 से 2010 तक इस सीट पर भाजपा नेता रामदेव महतो का दबदबा कायम रहा। उन्होंने लगातार चार चुनावों में जीत दर्ज की और 2010 में राजद प्रत्याशी नैयर आज़म को बेहद कम अंतर से हराया। उस चुनाव में भाजपा को 44,817 वोट मिले थे जबकि राजद उम्मीदवार को 44,229 वोट हासिल हुए थे।
तेजस्वी यादव का NDA पर बड़ा हमला: 20 साल की सरकार के बाद भी बिहार बेरोजगारी और पलायन का गढ़ क्यों?
लेकिन 2015 का चुनाव इस सीट के लिए निर्णायक साबित हुआ, जब राजद उम्मीदवार समीर कुमार महासेठ ने रामदेव महतो को शिकस्त दी। इस चुनाव में राजद को 76,823 वोट मिले जबकि भाजपा को 69,519 वोटों पर संतोष करना पड़ा। इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में भी राजद ने अपनी पकड़ मज़बूत बनाए रखी। समीर कुमार महासेठ ने विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रत्याशी सुमन कुमार महासेठ को 6,814 वोटों के अंतर से हराकर लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की।
जातीय समीकरण
मधुबनी विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। यहां ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है, जबकि यादव मतदाता दूसरे बड़े समूह के रूप में सामने आते हैं। अति पिछड़ा वर्ग के मतदाता लगभग छह लाख हैं और दलितों की संख्या भी दो लाख के आसपास है। कुल मिलाकर इस सीट पर 2,93,834 वोटर हैं जिनमें 1,56,010 पुरुष और 1,37,799 महिलाएं शामिल हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि मधुबनी में चुनावी नतीजे काफी हद तक जातीय गणित और स्थानीय नेताओं की पकड़ पर निर्भर रहते हैं। हालांकि, राजद की लगातार जीत ने यह संकेत दिया है कि फिलहाल जनता का झुकाव विपक्ष की ओर है। आगामी चुनाव में भाजपा, जदयू और अन्य दलों की रणनीति यही होगी कि वे राजद के इस गढ़ को तोड़ सकें। वहीं समीर कुमार महासेठ के सामने चुनौती अपनी जीत की लय बरकरार रखने की होगी। मधुबनी विधानसभा का चुनाव सिर्फ स्थानीय मुद्दों का नहीं बल्कि पूरे मिथिला क्षेत्र की राजनीति का प्रतिबिंब माना जाता है। यही वजह है कि बिहार की राजनीति में इस सीट पर सभी की नज़रें टिकी रहती हैं।






















