कल (शुकवार, 4 जुलाई को) महागठबंधन के सभी दलों ने बिहार के चुनाव आयुक्त से मुलाकात की। इसमें महागठबंधन ने चुनाव आयोग से पूछा कि “क्या बिहार विशेष गहन मतदाता पुनरीक्षण कार्यक्रम 2025 के तहत मतदाता सूची में नाम जोड़वाने के लिए भारतीय निर्वाचन आयोग को केवल 11 दस्तावेज मांगने का ही अधिकार है? इसका संवैधानिक एवं कानूनी आधार क्या है?”
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यहाँ एक मौलिक एवं विचारणीय सवाल खड़ा होता है कि क्या भारतीय निर्वाचन आयोग को यह अधिकार है कि वह केवल उन्हीं 11 दस्तावेजों को मान्य माने और किसी अन्य दस्तावेज को खारिज कर दे? संविधान का अनुच्छेद 326, वयस्क मताधिकार का आधार तय करता है – अर्थात 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र का कोई भी भारतीय नागरिक, जिसे कानून द्वारा अपात्र घोषित न किया गया हो, मतदान का हक रखता है। लेकिन यह अनुच्छेद यह स्पष्ट नहीं करता कि नागरिकता या आयु प्रमाणित करने के लिए कौन-कौन से दस्तावेज मान्य होंगे।
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Representation of the People Act, 1950 के Section 16 चुनावी अपात्रता के आधार तथा Section 21-23: नाम जोड़ने, हटाने, आपत्ति दर्ज करने आदि की प्रक्रिया की धाराओं में भी यह स्पष्ट निर्देश नहीं है कि केवल कौन से दस्तावेज ही मान्य होंगे। यह अधिकार मुख्य रूप से चुनाव आयोग की प्रक्रिया और अधिसूचना के अधीन छोड़ा गया है।
महागठबंधन ने आयोग से पूछा कि:-
- क्या भारतीय निर्वाचन आयोग को केवल वही 11 दस्तावेज स्वीकार करने का विशेषाधिकार प्राप्त है?
- सरकार द्वारा जारी अन्य दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, राशन कार्ड, मनरेगा जॉब कार्ड, इत्यादि मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया में अस्वीकार्य क्यों है, भले ही वे पहचान या निवास सिद्ध करें?
- आधार कार्ड जारी करते वक्त सरकार आपकी आँखों की पुतली, फ़िंगरप्रिंट्स सहित पहचान और आवास के कई दस्तावेज माँगती है तभी आधार कार्ड बनता है। फिर सरकार अपने द्वारा बनाए गए आधार कार्ड को क्यों छाँट रही है?
- यदि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम अथवा संविधान में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है तो यह 11 दस्तावेजों की सूची किस प्रक्रिया से तय हुई? क्या यह न्यायसंगत है?
- बिहार के 4 करोड़ से अधिक निवासी अन्य राज्यों में स्थायी और अस्थायी कार्य करते है। क्या 18 दिन में वो अपना सत्यापन कर पाएंगे? क्या सरकारी स्तर पर उन्हें बिहार लाने की कोई योजना है अथवा उनके वोट काटना उद्देश्य है?
- सत्यापन कार्य में मतदाता को सफ़ेद पृष्ठभूमि के साथ अपनी रंगीन फ़ोटो लगानी है। क्या सभी घरों/परिवारों में फ़ोटो उपलब्ध है? क्या अन्य दस्तावेज़ों की फ़ोटोकॉपी उपलब्ध है? उन्हें निर्वाचन आयोग को यह सब उपलब्ध कराने के लिए फ़ोटोस्टूडियो जाकर फ़ोटो खिंचाना होगा। यह प्रक्रिया ग़रीब मतदाताओं के उत्पीड़न के अलावा वित्तीय बोझ भी है।
- निर्वाचन आयोग Dashboard के ज़रिए सभी को बताए को प्रतिदिन कितने मतदाताओं का अब तक सत्यापन हुआ? कितने मतदाताओं का मत अस्वीकृत हुए? अगर इनकी मंशा ठीक है तो चुनाव आयोग को इस पर Dashboard के माध्यम से Live Realtime अपडेट देना चाहिए।
- निर्वाचन आयोग ने बताया कि प्रत्येक BLO के साथ 4 स्वयंसेवक लगाए गए है। हमने पूछा कि ये वॉलियंटर्स कौन है और इनके चयन का मानदंड क्या है? क्या वो सरकारी कर्मचारी है अथवा अन्य लोग?? हमने माँग रखी कि चुनाव आयोग BLO की तरह इन वॉलंटियर्स” यानि स्वयंसेवकों की भी सूची प्रकाशित करें ताकि सभी लोग उनका सत्यापन कर सकें।
हमारे प्रतिनिधि मंडल के सभी सदस्यों ने एक स्वर में कहा कि निर्वाचन आयोग संविधान के अधीन एक स्वतंत्र संस्था है। वह “कानून के अधीन” कार्य करता है, न कि कानून से ऊपर। यदि दस्तावेज़ों की सूची प्रशासनिक आदेश या आंतरिक गाइडलाइन से बनाई गई है, तो क्या उसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया और नागरिक अधिकारों पर प्रभाव डालने की इतनी व्यापक शक्ति दी जा सकती है?
निर्वाचन आयोग स्पष्ट रूप से यह बताए कि इन 11 दस्तावेजों का चयन किस विधिक शक्ति या धारा के तहत किया गया। चुनाव आयोग खासकर ग्रामीण और वंचित तबकों के हित में अन्य प्रामाणिक दस्तावेजों को भी स्वीकार्य बनाने पर पुनर्विचार करे अन्यथा सड़कों पर आंदोलन होगा।