Prashant Kishor Congress Bihar: बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को मिली करारी हार ने पूरे गठबंधन को भीतर तक झकझोर दिया है। आरजेडी से लेकर कांग्रेस और वाम दलों तक, हर पार्टी गहन समीक्षा बैठकों में जुटी है और यह समझने की कोशिश कर रही है कि आखिर मतदाताओं ने महागठबंधन को इस कदर नकार क्यों दिया। लेकिन इन आत्ममंथन बैठकों के बीच एक नई राजनीतिक हलचल ने चर्चा का केंद्र बदल दिया है। यह हलचल है प्रशांत किशोर को लेकर कांग्रेस नेता और बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू के बयान की।
कांग्रेस के रणनीतिकारों की मानें तो पार्टी अब सिर्फ हार का कारण जानने में नहीं, बल्कि भविष्य के नए राजनीतिक विकल्पों पर भी विचार कर रही है। इसी क्रम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कृष्णा अल्लावरू ने एक इंटरव्यू के दौरान पहली बार संकेत दिया कि आने वाले वक्त में प्रशांत किशोर से जुड़ा कोई बड़ा फैसला संभव है। कृष्णा अल्लावरू ने स्वीकार किया कि प्रशांत किशोर से उनका संवाद 2016-17 से लगातार बना हुआ है और बिहार को लेकर दोनों के बीच कई विचार साझा किए गए थे, हालांकि वह बातचीत किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंची।
इंटरव्यू के दौरान जब उनसे पूछा गया कि क्या कांग्रेस और प्रशांत किशोर के बीच चुनाव से पहले कोई औपचारिक बातचीत हुई थी, तो उन्होंने स्पष्ट किया कि बिहार की राजनीति को लेकर कई आइडिया पर चर्चा जरूर हुई थी, लेकिन कोई समझौता नहीं हुआ। हालांकि सबसे बड़ा संकेत उन्होंने तब दिया जब यह पूछा गया कि क्या कांग्रेस अब चुनावी हार के बाद प्रशांत किशोर के साथ नए सिरे से संवाद पर विचार कर सकती है। इस पर अल्लावरू का जवाब आया- सारे विकल्प खुले हैं।
सवाल यह है कि क्या कांग्रेस एक बार फिर प्रशांत किशोर की ओर अपना दरवाजा खोलने की तैयारी में है? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रशांत किशोर ने पिछले कुछ वर्षों में खुद को सिर्फ एक रणनीतिकार नहीं, बल्कि एक राजनीतिक इकाई के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है। उन्होंने बिहार में पार्टी बनाई, तीन साल पैदल यात्रा की और चुनाव लड़ा। हालांकि नतीजे उनके अनुकूल नहीं रहे और उनकी पार्टी विधानसभा की एक भी सीट नहीं जीत सकी। लेकिन वोट प्रतिशत बताता है कि लगभग 17 लाख लोगों ने उन्हें विकल्प के रूप में स्वीकार किया।
कांग्रेस के लिए यह संख्या छोटी नहीं है, खासकर तब जब पार्टी बिहार में केवल छह सीटों पर सिमट गई हो। ऐसे में कांग्रेस यह सोचने पर मजबूर है कि क्या भविष्य की रणनीति में प्रशांत किशोर को शामिल करके एक नया राजनीतिक मोर्चा खड़ा किया जा सकता है। लेकिन समीकरण सिर्फ इतने भर से नहीं बनेंगे। अगर कांग्रेस प्रशांत किशोर के साथ जाती है, तो सवाल उठेगा कि महागठबंधन का स्वरूप क्या रहेगा? क्या आरजेडी इस बात को स्वीकार करेगी? क्या वामदलों का समर्थन मिलेगा? और सबसे बड़ा सवाल कि क्या मतदाता इस नए गठजोड़ पर भरोसा करेंगे?
कांग्रेस की समीक्षा बैठकें जारी हैं। फैसले अभी आने बाकी हैं। लेकिन इतना तय है कि पार्टी अब “जैसे चल रहा था वैसे चलेगा” वाली मानसिकता से बाहर आने की तैयारी कर चुकी है। और अगर यह तैयारी प्रशांत किशोर के हाथ मिलाने तक पहुंचती है, तो बिहार की राजनीति एक बार फिर नए मोड़ पर खड़ी दिखाई देगी। फिलहाल राजनीति की गलियारों में केवल चर्चा है, लेकिन आने वाले दिनों में यही चर्चा किसी बड़े फैसला का आधार बन सकती है।






















