मुंबई : देश में हलाल सर्टिफिकेशन के जवाब में मल्हार मटन की दुकाने खुल गयी है। बता दें हलाल मुस्लिमों द्वारा विषेश तरीके से बनाया हुआ मटन होता है जबकि झटका हिन्दुओ के तरीके से काटा गया मटन होता है। हलाल मटन मुस्लिम लेते है ये उनकी धार्मिक बाध्यता है। वहीं अब मल्हार मटन को बढ़ावा दे कर हिन्ुओं को प्रेरित किया जा रहा कि वो झटका मटन ही खाएं। बता दें मल्हार सार्टिफिकेशन की पहल महाराष्ट्र के मत्स्य पालन और बंदरगाह कैबिनेट मंत्री नितेश राणे ने की है। सर्टिफाइड दुकानों की लिस्ट भी वेबसाइट पर उपलब्ध है, जिसमें बताया गया है कि मल्हार सर्टिफाइड मटन खटीक समुदाय के वेंडर के पास ही उपलब्ध है।
वेबसाइट में बताया गया है कि यह प्लेटफॉर्म उन मटन विक्रेताओं को बढ़ावा देता है जो बकरा या भेड़ को काटते के दौरान सख्त हिंदू धार्मिक प्रथाओं का पालन करते हैं। हलाल प्रोडक्ट में भी इस्लामी मान्यताओं का ख्याल रखने का दावा किया जाता है। राणे की इस पहल की एनसीपी एसपी नेता जितेंद्र आह्वाड ने आलोचना की है, जबकि शिंदे सेना और बीजेपी ने समर्थन किया है। समाजवादी पार्टी के नेता रईस शेख ने भी चौंकाते हुए इसका स्वागत किया है। मालूम हो कि आधिकारिक तौर से मल्हार सर्टिफिकेशन मटन यानी गोश्त का ही किया गया है, जबकि हलाल सर्टिफिकेशन में फूड प्रोडक्ट के अलावा कपड़ा, साबुन, चाय, तेल, शैंपू जैसे उत्पाद शामिल हैं । मल्हार वेबसाइट पर मौजूद दुकानों की संख्या भी गिनी चुनी है, मगर आने वाले कुछ वर्षों में यह सिस्टम गली-मुहल्लों में दिखने लगे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। यह अभी हलाल के मुकाबले खड़ा नया ब्रांड है, जिसे यह खाने के तौर-तरीकों से अधिक वैचारिक प्रतिस्पर्धा के तौर पर स्थापित करने की कोशिश है। महाराष्ट्र में हलाल बनाम मल्हार के बिजनेस कॉम्पिटिशन और वैचारिक लड़ाई के लिए पर्याप्त स्पेस है।
डिपार्टमेंट ऑफ एनिमल हस्बेंड्री के अनुसार, बंगाल के बाद महाराष्ट्र मटन खाने में दूसरे नंबर पर है, जहां 11 फीसदी उत्पादन होता है। भारत में सलाना 640 मीट्रिक टन बकरे के मीट की खपत होती है। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, तेलंगाना और तमिलनाडु बकरे के मांस के उत्पादन में 75 फीसदी योगदान करते हैं। अगर बकरे के साथ चिकन को भी शामिल कर दिया जाए तो नॉनवेज का मार्केट साइज काफी बड़ा है। हिंदू संगठनों ने हलाल सर्टिफिकेशन को सुनियोजित साजिश करार दिया था। आरोप है कि हलाल का तमगा देने वाली कंपनियां और संगठन कारोबारी मुनाफे के लिए फर्जी प्रमाण पत्र बांट रहे हैं। राजनीतिक नजरिये से देखें तो इनमें से छह राज्यों में झटका बनाम हलाल पर बहस होती रही है।
तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना में ऐसा विवाद ज्यादा नजर नहीं आया है। हिंदू और सिख कम्यूनिटी के लोग झटका मांस की वकालत करते रहे हैं, मगर इसके लिए उनके पास हलाल सर्टिफिकेशन जैसा प्लेटफॉर्म नहीं था।उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने हलाल सर्टिफिकेशन को गैरकानूनी घोषित कर चुकी है, क्योंकि कोई सरकारी एजेंसी इसके लिए प्रमाण पत्र जारी नहीं करती है। यूपी सरकार गैरकानूनी तौर से सर्टिफिकेट जारी करने के लिए हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई, जमीयत उलेमा हिंद हलाल ट्रस्ट दिल्ली, हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया मुंबई, जमीयत-उलेमा-ए-महाराष्ट्र के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज कर चुकी है।
ऐसे में मल्हार सर्टिफिकेट की वैधता पर सवाल खड़े हुए हैं। राजनीतिक तौर से संरक्षण और मार्केटिंग हुई तो मल्हार सर्टिफिकेट देने वाली कंपनियां भी पैदा हो जाएंगी, जैसा हलाल प्रोडक्ट को लेकर हुआ। भारत में करीब 12 कंपनियां हलाल सर्टिफिकेट देती हैं। बीजेपी नेता नीतेश राणे ने मल्हार वेबसाइट की शुरुआत करते हुए कहा कि यह हिंदू मांस विक्रेताओं को एक ही मंच पर लाने की कोशिश है। राजनीतिक नजरिये से देखें तो मल्हार को हलाल के मुकाबले के लिए लाया गया है, जिस पर प्रतिक्रिया आनी बाकी है।