अहमदाबाद: कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने वक्फ (संशोधन) बिल, 2024 को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। अहमदाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान खरगे ने कहा कि इस बिल के जरिए मुसलमानों की दान की गई संपत्तियों को हड़पने का काम किया जा रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रावधान गलत है, क्योंकि यह धार्मिक स्वायत्तता के सिद्धांतों के खिलाफ है। खरगे ने तर्क दिया, “वक्फ एक डोनेशन का बोर्ड है। दान की गई जमीन को कोई छीन नहीं सकता। हम चाहते थे कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम न हों, जैसा पहले था। उदाहरण के लिए, किसी हिंदू मंदिर में कोई मुस्लिम सदस्य नहीं होता, जैसे राम मंदिर ट्रस्ट या तिरुपति मंदिर ट्रस्ट में।”
उन्होंने इस बिल को अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला करार दिया। वक्फ (संशोधन) बिल, 2024 को 4 अप्रैल 2025 को संसद में पारित किया गया था, जिसके बाद से यह विवादों में घिरा हुआ है। इस बिल का मकसद वक्फ बोर्ड के तहत आने वाली 9.4 लाख एकड़ में फैली 8.7 लाख संपत्तियों, जिनकी अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये है, के प्रबंधन में पारदर्शिता लाना बताया गया है। हालांकि, विपक्षी नेताओं ने इसे असंवैधानिक करार दिया है। उनका कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक समुदायों को अपने मामलों के प्रबंधन का अधिकार देता है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस बिल को “असंवैधानिक” बताते हुए कहा था कि यह अनुच्छेद 14, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करता है। वहीं, कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में ठीक से चर्चा किए बिना “बुलडोज” कर पारित किया गया।
खरगे ने एक अन्य बयान में कहा, “रात के 4 बजे तक इस बिल पर बहस हुई और वोटिंग हुई। हमारे जितने लोग थे, उन्होंने इसका विरोध किया। आज भी हम चाहते हैं कि सरकार इस बिल को वापस ले।” इस मुद्दे पर विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के बीच तनातनी जारी है, और आने वाले दिनों में इस पर और बहस की संभावना है। यह बिल 8 अगस्त 2024 को लोकसभा में पेश किया गया था और इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया था। बिल में वक्फ बोर्ड की संरचना में बदलाव, वक्फ संपत्ति की पहचान के लिए बोर्ड की शक्तियों में संशोधन और वक्फ बनाने के लिए इस्लाम को कम से कम पांच साल तक मानने की शर्त जैसे प्रावधान शामिल हैं।