कटिहार जिले की मनिहारी विधानसभा Manihari Vidhan Sabha (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 67) बिहार की उन सीटों में गिनी जाती है, जिनका राजनीतिक इतिहास उतार-चढ़ाव और बदलावों से भरा रहा है। यह सीट अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग के लिए आरक्षित है, जिसके चलते यहां की राजनीति जातीय समीकरणों और सामाजिक संरचना पर आधारित रहती है। 1957 में पहली बार हुए चुनाव में कांग्रेस की पार्वती देवी विधायक बनीं और तभी से इस सीट का राजनीतिक सफर कांग्रेस और अन्य दलों के बीच संघर्ष का गवाह रहा है।
चुनावी इतिहास
मनिहारी विधानसभा क्षेत्र में अब तक 16 बार चुनाव हो चुके हैं, जिनमें उपचुनाव भी शामिल हैं। कांग्रेस ने यहां सबसे ज्यादा सफलता पाई है, खासकर 1985 के बाद से उसका दबदबा कायम रहा। हालांकि, इस दौरान जनता दल, जनता पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 1990 और 1980 के चुनाव में जनता दल और जनता पार्टी की जीत ने यह साबित किया कि मनिहारी सीट पूरी तरह किसी एक पार्टी की नहीं रही। दिलचस्प पहलू यह है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मुख्य चुनावों में यहां कभी जीत दर्ज नहीं कर पाई, हालांकि 2005 के उपचुनाव में उसने जीत का स्वाद जरूर चखा था।
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2010 का चुनाव जेडीयू के पक्ष में गया, जिसने कांग्रेस की पकड़ को चुनौती दी। लेकिन 2020 में कांग्रेस ने अपनी पुरानी स्थिति को दोबारा मजबूत किया। कांग्रेस प्रत्याशी मनोहर प्रसाद सिंह ने जेडीयू के शंभु कुमार सुमन को 21,209 वोटों के बड़े अंतर से हराया। सिंह को कुल 83,032 वोट मिले, जबकि सुमन 61,823 वोटों पर सिमट गए। इस जीत ने यह स्पष्ट किया कि मनिहारी विधानसभा में कांग्रेस अब भी एक मजबूत विकल्प बनी हुई है।
जातीय समीकरण
मनिहारी की राजनीति का आधार यहां का जातीय समीकरण है। मुस्लिम समुदाय इस क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभाता है। इसके साथ ही यादव, कोइरी, पासवान, रविदास और ब्राह्मण मतदाता भी महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं। मुस्लिम और यादव वोटों का मेल कांग्रेस के पक्ष में जाता रहा है, जबकि जेडीयू और भाजपा का वोट बैंक अपेक्षाकृत बंटा हुआ रहा है। यही वजह है कि कांग्रेस यहां 2020 में बड़ी बढ़त से जीत दर्ज कर पाई।
अब नजरें 2025 के चुनाव पर टिकी हैं। क्या कांग्रेस अपनी जीत की लय बरकरार रख पाएगी, या जेडीयू और भाजपा एकजुट होकर नया समीकरण बना पाएंगे? भाजपा अब तक मुख्य चुनाव में सफलता से दूर रही है, लेकिन उसकी लगातार सक्रियता यह संकेत देती है कि वह इस सीट पर भविष्य में बड़ा बदलाव ला सकती है। वहीं, जेडीयू के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुस्लिम और यादव वोटों को कांग्रेस से खींचने की होगी।
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मनिहारी विधानसभा का अगला चुनाव केवल कटिहार जिले ही नहीं बल्कि पूरे सीमांचल क्षेत्र की राजनीति की दिशा तय कर सकता है। यहां का हर चुनाव यह संदेश देता है कि जातीय समीकरण और पार्टी की नीतियां, दोनों ही साथ मिलकर नतीजों को प्रभावित करते हैं।






















