नयी दिल्ली: वाजपेयी सरकार के अधूरे कार्य को पूरा करने को तैयार मोदी सरकार के लिए परिसीमन इतना भी आसान नहीं दिखाई पड़ रहा। मासलूम हो कि विपक्ष लोकसभा सीटों के परिसीमन के मुद्दे पर एकजुट होकर सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति में जुट गया है। बता दें पिछले दिनों संसद में भी विपक्षी दलों के तीखे तेवर इस मुद्दे पर दिखे थे। इधर तमिलनाडु में शनिवार को हुई विपक्षी दलों की बैठक को इसकी बड़ी शुरूआत माना जा रहा है। हलांकि इस बैठक से महाराष्ट्र और बदहंल सहित हई दलों ने दूरी बनाई लेकिन फिर भी स्टालिन मोदी सरकार को घेरने में कोई मौका जाने देन नहीं चाह रहें है। इसे लेकर आने वाले दिनों में विपक्ष इस पर संसद के भीतर और बाहर सरकार को घेरने की कोशिश करेगा।
विपक्ष केंद्र पर परिसीमन को टालने का दबाव बना रहा है। मालूम हो कि वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में 84वें संविधान संसोधन के जरिये लोकसभा सीटों का परिसीमन 2026 तक के लिए टाल दिया गया था। तब भी वही समस्या सामने आई थी जो आज है। दक्षिण राज्यों के दलों की तब भी चिंता यही थी कि उनकी सीटें कम हो जाएंगी, क्योंकि उनकी आबादी घटी है। लेकिन अब परिसीमन को लेकर सुगबुगाहट शुरू होने लगी है, जिसके खिलाफ दक्षिण के दल सर्वाधिक मुखर हैं। माना जा रहा है कि 2026 में जनगणना के बाद परिसीमन की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। 2029 के चुनाव नए परिसीमन के आधार पर होंगे, जिसमें 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए भी आरक्षित की जानी हैं।
दक्षिण में एनडीए की सरकार सिर्फ आंध्र प्रदेश में है। बाकी राज्यों में गैर एनडीए सरकारें हैं। इन राज्यों में लोकसभा की 129 सीटें हैं, जो नए परिसीमन से घटकर 100 से नीचे आ सकती हैं। इसलिए शेष चार राज्य तमिनलाडु, केरल, कर्नाटक और तेलंगाना खुलकर सामने आ चुके हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तरफ से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन वहां की विपक्षी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस इस मुद्दे को उठा रही है। ऐसे में नायडू की पार्टी ज्यादा समय तक इस चुप नहीं रह सकती। उसे परिसीमन पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी कि दक्षिणी राज्यों के साथ हैं या नहीं। चेन्नई की बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की मौजूदगी यह संकेत दे रही है कि विपक्ष के लिए यह मुद्दा सिर्फ दक्षिणी राज्यों का नहीं है।
बल्कि विपक्ष मुद्दे को भाजपा की चुनावी रणनीति से जोड़कर जनता के बीच जाएगा, क्योंकि साफ है कि यदि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होता है तो दक्षिण की सीटें कम होंगी और उत्तर की बढ़ जाएंगी। इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा। स्टालिन की बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की गैरमौजूदगी पर सवाल उठ रहे हैं। लेकिन यह माना जा रहा है कि वह इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ ही रहेंगी। मौजूदा समय में लोकसभा की जो 543 सीटें हैं वह 1971 की जनगणना पर निर्धारित हुई हैं। 2026 की जनगणना से इसमें बड़ा बदलाव आ सकता है। 2008 में भी लोकसभा सीटों का परिसीमन हुआ था, लेकिन तब सिर्फ सीटों का पुनर्गठन हुआ था और संख्या नहीं बढ़ी थी। ऐसे में दक्षिणी राज्यों समेत विपक्ष इसी बात पर जोर देगा कि परिसीमन को फिर टाल दिया जाए। शनिवार की बैठक में केंद्र से इस मामले में वाजपेयी सरकार के नक्शे कदम पर चलने की अपील भी की गई।
इसे लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शनिवार को आरोप लगाया कि डीएमके कथित तौर पर हिंदी थोपने और परिसीमन जैसे भावनात्मक मुद्दों को उठा रही है, क्योंकि तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। वहीं डीएमके अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने परिसीमन मुद्दे पर राजनीतिक और कानूनी कार्य योजना तैयार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का समर्थन किया। साथ ही निष्पक्ष परिसीमन की वकालत की। स्टालिन की बैठक का भाजपा की तमिलनाडु इकाई के नेताओं ने काले झंडे दिखाकर विरोध किया। उधर, आरएसएस के संयुक्त महासचिव अरुण कुमार ने चेन्नई की बैठक में शामिल होने वालेां से पूछा कि क्या उनका कोई राजनीतिक एजेंडा है या फिर वास्तव में इसे लेकर चिंतित हैं। वहीं झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने कहा है कि परिसीमन को सिर्फ जनसंख्या के आधार पर सीमित करना निष्पक्ष और न्यायसंगत नहीं हो सकता। हम इस निष्पक्ष और लोकतांत्रिक मांग का समर्थन करते हैं।