बिहार की राजनीति में मटिहानी विधानसभा सीट (Matihani Vidhan Sabha 2025) का विशेष महत्व है। यह सीट बेगूसराय जिले में आती है और अपने चुनावी इतिहास के कारण राज्य की राजनीति में अक्सर चर्चा में रहती है। मटिहानी की चुनावी पहचान काफी हद तक लेफ्ट और जेडीयू के बीच बंटती रही है। इस क्षेत्र की चुनावी जमीन ने समय-समय पर कांग्रेस, सीपीआई, जेडीयू और निर्दलीय उम्मीदवारों को सत्ता की राह दिखाई है।
चुनावी इतिहास
1980 और 1985 में कांग्रेस के प्रमोद कुमार शर्मा ने लगातार जीत हासिल की थी, लेकिन इसके बाद 1990, 1995 और 2000 में सीपीआई के राजेंद्र रंजन ने इस सीट पर अपना दबदबा कायम किया। अक्टूबर और फरवरी 2005 में निर्दलीय उम्मीदवार नरेंद्र कुमार सिंह ने दोनों बार जीत हासिल कर मटिहानी की राजनीति में नई हलचल पैदा की। 2010 और 2015 के विधानसभा चुनावों में जेडीयू ने यहां जीत दर्ज की।
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2015 में मटिहानी विधानसभा सीट महागठबंधन की ओर से जेडीयू के खाते में आई थी। बोगो सिंह ने बीजेपी के सर्वेश सिंह को 89,297 वोट (49%) के साथ मात दी थी। वहीं, सीपीआई की शोभा देवी तीसरे स्थान पर रहीं, जिन्होंने 11,232 वोट (6.2%) हासिल किए। 2010 के विधानसभा चुनाव में भी बोगो सिंह ने कांग्रेस के अभय कुमार सर्जन को 60,530 वोट (40.5%) के साथ हराया था।
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विधानसभा चुनाव 2020 में मटिहानी के राजनीतिक परिदृश्य में फिर बदलाव देखने को मिला। लोक जन शक्ति पार्टी से राज कुमार सिंह ने जेडीयू के नरेंद्र कुमार सिंह को केवल 333 वोटों के अंतर से हराया। इस चुनाव में राज कुमार सिंह को 61,364 वोट (29.64%) और नरेंद्र कुमार सिंह को 61,031 वोट (29.48%) मिले। इस चुनाव में माकपा के राजेंद्र प्रसाद सिंह भी निर्णायक भूमिका में रहे, जिन्हें 60,599 वोट (29.27%) मिले।
जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की बात करें तो मटिहानी विधानसभा क्षेत्र में भूमिहार जाति के मतदाता करीब एक चौथाई हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय भी चुनाव परिणाम पर निर्णायक प्रभाव डालता है। जनगणना 2011 के अनुसार मटिहानी विधानसभा क्षेत्र की कुल आबादी 4,63,032 है, जिसमें 72.4% आबादी गांवों में और 27.6% शहरी क्षेत्रों में रहती है। अनुसूचित जाति और जनजाति का अनुपात क्रमशः 12.37 और 0.09 फीसदी है।






















