Mohania Vidhansabha 2025: मोहनिया विधानसभा (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 204) बिहार की उन चुनिंदा सीटों में से एक है जहाँ राजनीति हर बार जातीय समीकरणों और सामाजिक संतुलन पर टिकी रहती है। सासाराम लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली यह सीट 1957 से ही अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है और यही वजह है कि यहाँ दलित-महादलित मतदाता चुनावी जीत-हार की असली धुरी बन चुके हैं।
चुनावी इतिहास
मोहनिया का राजनीतिक इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है। यहाँ का राजनीतिक सफर 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बदरी सिंह से शुरू हुआ था और तब से अब तक इस क्षेत्र में 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। इस दौरान कांग्रेस ने पाँच बार जीत हासिल की, जबकि जेडीयू, भाजपा, राजद, बीएसपी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने दो-दो बार जनता का भरोसा जीता। जनता पार्टी और जनता दल को यहाँ एक-एक बार अवसर मिला। इस सीट पर हर चुनाव में जातीय रणनीति और विकास के वादों का मिश्रण देखने को मिलता रहा है।
2010 में जेडीयू के छेदी पासवान ने यहाँ जीत दर्ज की थी, जबकि 2015 में भाजपा के निरंजन राम ने कांग्रेस प्रत्याशी संजय कुमार को 7,581 मतों के अंतर से हराकर भाजपा का परचम लहराया। लेकिन 2020 का चुनाव समीकरण बदल गया — आरजेडी की संगीता कुमारी ने भाजपा के निरंजन राम को 12,054 वोटों से शिकस्त देकर सीट लालटेन के हाथों सौंप दी। हालांकि बाद में संगीता खुद पाला बदलकर राजद छोड़ भाजपा में शामिल हो गई हैं।
जातीय समीकरण
2025 में मुकाबला और भी दिलचस्प होने वाला है क्योंकि अब सवाल यह है कि क्या राजद अपने MY (मुस्लिम-यादव) और महादलित गठजोड़ के दम पर जीत दोहरा पाएगी या भाजपा-जदयू की जोड़ी दलित वोटों में सेंध लगाकर सत्ता की वापसी करेगी।मोहनिया की सियासत में पासवान, चमार/रविदास और दुसाध समुदाय की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है, जिनकी एकजुटता किसी भी प्रत्याशी की जीत तय कर सकती है। इनके साथ यादव, कुर्मी और भूमिहार वोट भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। मुस्लिम मतदाता यहाँ के समीकरण को झुका देते हैं — 2020 में यही हुआ जब मुस्लिम-यादव और महादलित वोटों का जोड़ राजद को बढ़त दिला गया।
ब्राह्मण और कायस्थ समुदाय पारंपरिक रूप से भाजपा के समर्थन में वोट डालते रहे हैं, लेकिन ओबीसी और दलित मतदाताओं का झुकाव जिस ओर होता है, वही पार्टी जीत की सीढ़ी चढ़ती है।2025 का चुनाव इस बात की परीक्षा होगा कि क्या आरजेडी अपने सामाजिक गठबंधन को बरकरार रख पाएगी या भाजपा-जदयू विकास और प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर एक बार फिर दलित बहुल सीट पर अपनी पकड़ मजबूत कर पाएंगे।






















