नई दिल्ली: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज तटीय क्षेत्रों और द्वीपों के लिए एक लचीला भविष्य सुनिश्चित करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने “शेपिंग अवर रेजिलिएंट फ्यूचर फॉर कोस्टल रीजन” सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि ये क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। यह बयान फ्रांस के नीस में आयोजित तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (UNOC3) के विशेष सत्र के साथ मेल खाता है, जहां आज “ओशन राइज एंड कोस्टल रेजिलिएंस कोएलिशन” की शुरुआत हुई।
वैश्विक आपदाओं का बढ़ता खतरा
पीएम मोदी ने हाल की आपदाओं का उल्लेख किया, जिसमें भारत और बांग्लादेश में चक्रवात, कैरेबियन में हरीकेन मैरी, दक्षिण पूर्व एशिया में टाइफून यागी, संयुक्त राज्य अमेरिका में हरीकेन हेलेन, फिलीपींस में टाइफून उसागी, और पराग्वे में चक्रवात जिरु (जो भौगोलिक रूप से असामान्य है और संभवतः त्रुटि हो सकती है) शामिल हैं। इन आपदाओं ने जीवन और संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया है। राष्ट्रीय महासागर और वायुमंडलीय प्रशासन (NOAA) के आंकड़ों के अनुसार, गर्म होती महासागरों के कारण 1980 के बाद से श्रेणी 4-5 हरीकेन में 40% की वृद्धि हुई है।
ओशन राइज कोएलिशन की शुरुआत
नीस में आयोजित इस सम्मेलन में, 1,000 शहरों और क्षेत्रों को एकजुट करने वाला “ओशन राइज एंड कोस्टल रेजिलिएंस कोएलिशन” लॉन्च किया गया, जो समुद्र के स्तर में वृद्धि से प्रभावित 10 लाख लोगों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और नीस के मेयर क्रिश्चियन एस्ट्रोसी के नेतृत्व में यह पहल जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी चुनौती से निपटने के लिए एक वैश्विक मंच प्रदान करेगी।
अतीत की आपदाओं से सबक
पीएम ने 2017 के हरीकेन मारिया का भी जिक्र किया, जिसने प्यूर्टो रिको में 3,059 लोगों की जान ली और ऐतिहासिक बिजली कटौती का कारण बना, जिसके नुकसान की अनुमानित लागत 90 अरब डॉलर थी। नेचर जर्नल (2021) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक समुद्र के बढ़ते स्तर से तूफान के ज्वार की जोखिम 20-30% तक बढ़ सकती है, जो तटीय क्षेत्रों के लिए चेतावनी का संकेत है।
रेजिलिएंस के लिए कदम
पीएम मोदी ने तटीय आर्द्रभूमियों, ट्यूनों और चट्टानों को संरक्षित करने जैसे उपायों पर जोर दिया, जो तूफान के ज्वार को अवशोषित करने में मदद करते हैं। यह पहल न केवल भारत, बल्कि वैश्विक समुदाय के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकती है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल हरित गैस उत्सर्जन में कमी की आवश्यकता है।
इस वैश्विक पहल के साथ, भारत तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा और सतत विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत कर रहा है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक लचीला भविष्य सुनिश्चित करेगा।