पश्चिम चंपारण जिले की नरकटियागंज विधानसभा सीट 2008 के परिसीमन के बाद वजूद में आई। यह सीट अभिनेता मनोज बाजपेयी और भाजपा नेता सतीश चंद्र दुबे जैसे चर्चित नामों का घर रही है और अब सियासी चर्चाओं का केंद्र बनती जा रही है। 2010 से लेकर 2020 तक हुए चार चुनावों ने इस सीट की राजनीतिक दिशा तय करने में कई दिलचस्प मोड़ दिए हैं।
तीन चुनाव, एक उपचुनाव और बदलते समीकरण
2010 में भाजपा के सतीश चंद्र दुबे ने कांग्रेस के आलोक वर्मा को मात दी, तो 2015 में कांग्रेस ने वापसी करते हुए विनय वर्मा को मैदान में उतारा और भाजपा की रेणु देवी को हराकर सत्ता में वापसी की। लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकी — 2020 में भाजपा ने फिर से वापसी की, जब रश्मि वर्मा ने कांग्रेस के विनय वर्मा को हराकर सीट पर कब्जा जमाया। रश्मि वर्मा की 2020 में 45.85% वोट शेयर के साथ जीत इस बात का संकेत था कि भाजपा ने फिर से इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। लेकिन दिलचस्प यह कि यहां मुकाबला हमेशा त्रिकोणीय रहा है — निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी अच्छा-खासा प्रदर्शन किया है।
जातियों का गणित: असली खेल का आधार
नरकटियागंज सीट पर राजपूत, भूमिहार, कुर्मी, ब्राह्मण और यादव मतदाता जीत-हार का रुख तय करते हैं। यहां किसी एक जाति का वर्चस्व नहीं है, बल्कि गठबंधन और रणनीति ही उम्मीदवारों की नैया पार लगाती है।
2025 में मुकाबला और भी दिलचस्प
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की आहट के साथ नरकटियागंज एक बार फिर निर्णायक सीट बनने को तैयार है। जातीय संतुलन, पुराने प्रदर्शन और अधूरी उम्मीदों के बीच इस बार कौन बाजी मारेगा — यह देखना दिलचस्प होगा। क्या इस बार नरकटियागंज की जनता बदलाव का फैसला करेगी या फिर एक बार फिर वही चेहरा लौटेगा? मैदान तैयार है, नजरें अब जनता पर टिकी हैं।