‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली समिति ने राष्ट्रपति भवन में द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात कर अपनी रिपोर्ट सौंपी। यह रिपोर्ट 18,626 पन्नों की है, जिसमे पिछले 191 दिनों के हितधारकों, विशेषज्ञों और अनुसंधान कार्य के साथ व्यापक परामर्श का नतीजा शामिल है। पिछले सितंबर में गठित समिति को मौजूदा संवैधानिक ढांचे को ध्यान में रखते हुए लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए संभावनाएं तलाशने और सिफारिशें करने का काम सौंपा गया है। समिति में लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष सी कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी भी सदस्य हैं। विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल समिति की बैठकों में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में शामिल हुए, जबकि विधि सचिव नितेन चंद्रा समिति के सचिव हैं।
‘एक देश, एक चुनाव’ वाली कोविंद समिति देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान के अंतिम पांच अनुच्छेदों में संशोधन की सिफारिश कर सकती है। कोविंद समिति ने कहा कि पहले चरण में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, जिसके बाद 100 दिन के अंदर दूसरे चरण में स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जा सकते हैं। वहीं त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में शेष पांच साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं। इसके साथ हीं समिति ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, कर्मचारियों और सुरक्षा बलों संबंधी जरूरतों के लिए पहले से योजना बनाने की सिफारिश भी की। निर्वाचन आयोग ने लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से एकल मतदाता सूची, मतदाता पहचान पत्र तैयार करने का भी सुझाव दिया है। समिति संविधान, जनप्रतिनिधित्व कानून और किसी भी अन्य कानून और नियमों में विशिष्ट संशोधनों की जांच और सिफारिश करेगी, जिसमें एक साथ चुनाव कराने के उद्देश्य से संशोधन की आवश्यकता होगी।
एक मीडिया रिपोर्ट की माने तो रिपोर्ट में ‘1951-52 और 1967 के बीच तीन चुनावों के डाटा का इस्तेमाल किया गया है। यहां यह तर्क दिया गया है कि पहले की तरह अब भी एक साथ चुनाव करना संभव है। बताया गया कि एक साथ चुनाव कराना तब बंद हो गया था जब कुछ राज्य सरकारें अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही गिर गई थीं या उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था, जिससे नए सिरे से चुनाव कराने की आवश्यकता पड़ी।’ हालांकि पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अध्यक्षता में समिति गठित करने के फैसले ने विपक्षी गुट इंडिया को आश्चर्यचकित कर दिया था और विपक्षी गठबंधन ने उक्त समिति के गठन के इस फैसले को देश के संघीय ढांचे के लिए ‘खतरा’ करार दिया था।
मीडिया रिपोर्ट की हीं माने तो इससे पहले, समिति के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर इस बात की पुष्टि की थी कि ‘समिति 2029 में एक साथ चुनाव कराने का सुझाव देगी। साथ ही इससे संबंधित प्रक्रियात्मक और तार्किक मुद्दों पर चर्चा करेगी।’ समिति के एक दूसरे सदस्य ने भी नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा कि ‘समिति का मानना है कि उसकी सभी सिफारिशें सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध होनी चाहिए, लेकिन यह सरकार पर निर्भर है कि वह उन्हें स्वीकार या अस्वीकार करे।’ दूसरे सदस्य ने यह भी कहा कि ‘रिपोर्ट में 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्राची मिश्रा द्वारा एक साथ चुनावों की आर्थिक व्यवहार्यता पर एक पेपर शामिल है। रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने के लिए आवश्यक वित्तीय और प्रशासनिक संसाधनों का भी उल्लेख किया जाएगा।’ आयोग ने अपनी वेबसाइट के माध्यम से और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों सहित विभिन्न हितधारकों से प्राप्त फीडबैक पर विचार किया है।
आइये नज़र डालते हैं समिति की पञ्च प्रमुख बातों पर :-
- समिति की सिफारिश है कि लोकसभा, विधानसभा चुनावों के साथ-साथ पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनाव कराए जा सकते हैं। हालांकि, समिति इनको दो चरणों में लागू करने की सिफारिश करती है। जहां पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव और फिर 100 दिन के अंदर दूसरे चरण में स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जाने की बात है।
- समिति ने संविधान में कुछ संशोधन की भी वकालत की है। इसके तहत कुछ शब्दावली में हल्का बदलाव या यूं कहें कि उनको नए सिरे से परिभाषित करने की बात है। ‘एक साथ चुनाव’ को ‘जेनरल इलेक्शन’ कहने का सुझाव दिया गया है।
- सिफारिश के मुताबिक, लोकसभा-विधानसभा चुनाव के बीच अगर एक तालमेल बैठ जाता है और एक देश – एक चुनाव होने लगता है तो यह हर पांच साल पर हुआ करेगा। हां, अगर कोई सदन पांच वर्ष की अवधि से पहले भंग हो गई तो फिर मध्यावधि चुनाव अगले पांच साल के लिए नहीं बल्कि केवल बचे हुए कार्यकाल के लिए होगा ताकि अवधि पूरा होने तक राज्य और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकें।
- लोकसभा का पांच साल कार्यकाल पूरा होने से पहले यदि किसी राज्य विधानसभा में सरकार गिरती है, त्रिशंकु या अविश्वास प्रस्ताव जैसी स्थिति में लोकसभा के बचे हुए कार्यकाल की अवधि के आधार पर विधानसभा में चुनाव कराएं जाएं। जैसे लोकसभा पांच में एक साल का कार्यकाल पूरा कर चुकी और कहीं राज्य में सरकार गिर गई तो विधानसभा चुनाव चार साल का कराया जाए।
- सिफारिशों में एकल मतदाता सूची तैयार करने का भी सुझाव है और इसके लिए संविधान के कई अनुच्छेदों में संविधान संशोधन की सिफारिश की गई है।