अखिलेश यादव को आखिरकार राजनीति की समझ आ ही गई। राजनीति अड़ने नहीं, झुकने का नाम है। यह बात शायद अब तक अखिलेश समझ नहीं पाए थे। लेकिन, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 ने उन्हें ऐसा झटका दिया है कि राजनीति की एबीसीडी से लेकर जेड तक समझने और बूझने लगे हैं। राज्यसभा को लेकर उम्मीदवारी का उनका फैसला उनकी इसी समझ का परिणाम है। जेल में बंद आजम खान भले ही अखिलेश यादव के लिए अछूत रहे हों, लेकिन जेल से निकलते ही वे कितने प्रभावी हो सकते हैं, इसकी भनक और समझ दोनों अखिलेश को है। यही कारण है कि पार्टी को अनेक पाटों में बंटने से बचाने के लिए अखिलेश ने राज्यसभा की उम्मीदवारी का एक ऐसा फॉर्मूला तैयार किया, जिससे उनकी पार्टी में विरोधी रहे भी चित पड़े हैं।
कांग्रेस ने सेक्युलरिज्म की गोलियां चलाईं
जी हां, हम बात कर रहे हैं, कपिल सिब्बल की। कांग्रेस के लिए सुप्रीम कोर्ट में हर बड़े केस में कपिल सिब्बल का देखा जा सकता है। कपिल सिब्बल के कंधे पर बंदूक रखकर कांग्रेस ने सेक्युलरिज्म की गोलियां खूब चलाईं। अफजल की फांसी के खिलाफ रात के दो बजे कोर्ट खुलवाना हो या फिर राम मंदिर में मुस्लिम पक्ष का पैरोकार बनना, कपिल सिब्बल हर उस मौके पर अपनी वकालत धर्म के हवाले से खड़े नजर आए। हां, यह बात अलग है कि सुप्रीम कोर्ट की परिधि से बाहर निकलते ही वे कांग्रेस नेता होते थे, जो पार्टी की नीतियों पर काम करता दिखता था। अब वे सपा के पाले में खड़े दिख रहे हैं।
कपिल सिब्बल की भूमिका
अखिलेश ने कपिल सिब्बल को लाकर आजम खान को साध लिया है। जी हां, आजम खान को 27 माह बाद जेल से बाहर निकालने में कपिल सिब्बल की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। जिस प्रकार से उन्होंने जिरह की, सुप्रीम कोर्ट ने आजम को अंतरिम जमानत दे दी। अब अखिलेश ने सिब्बल को पाले में लाकर आजम को संदेश दिया है कि जिसने आपको छुड़ाया, हमने उसका सम्मान किया। निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर उतरे कपिल सिब्बल का समर्थन कर अखिलेश एक तीर से कई शिकार करते दिख रहे हैं।
अखिलेश ने परिवार की बहू अपर्णा यादव को गंवाया
उत्तर प्रदेश चुनाव के समय में पुष्पा फिल्म के झुकेगा नहीं स्टाइल में अखिलेश ने जिस प्रकार से परिवार की बहू अपर्णा यादव को गंवाया। उस प्रकार की गलती इस बार नहीं करते दिखे। कपिल सिब्बल की उम्मीदवारी से बड़े चाचा रामगोपाल यादव नाराज हुए। उन्हें मनाने के लिए अखिलेश ने झट से उनके सिपाहसलार जावेद अली खान को उम्मीदवार बना दिया। बस फिर क्या था, राम गोपाल भी हंसी-खुशी कपिल सिब्बल के नामांकन कार्यक्रम में शामिल हो लिए।
सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी
वहीं, पत्नी डिंपल यादव को राज्यसभा का टिकट थमाकर दिल्ली की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने की रणनीति भी फाइनल कर ली। साफ है, अखिलेश लखनऊ से दिल्ली तक अपनी पकड़ पार्टी पर कमजोर नहीं होने देना चाहते। ऐसे में उनके लिए यह राज्यसभा चुनाव एक मौके की तरह आया, जिसे उन्होंने बड़े ही चतुर राजनीतिज्ञ के तरीके से अपने पक्ष में भुना लिया है। इसे कहते हैं सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी। क्योंकि, अब तक पार्टी में एक अलग गुट बनाने की कोशिश कर रहे चाचा शिवपाल यादव, बिना आजम खान अकेले, एकदम अकेले रह जाएंगे।