वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई है। इस कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी और विपक्ष के पूर्व नेता के तौर पर गुलाम नबी आज़ाद को सदस्य बनाया गया है। सदस्यों में एनके सिंह, सुभाष कश्यप, हरीश साल्वे और संजय कोठारी का भी नाम शामिल है। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल आमंत्रित सदस्य और विधि कार्य विभाग के सचिव नितेन चंद्र एचएलसी के सचिव होंगे। इस कमेटी का मुख्य काम पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में उन सभी पहलुओं पर विचार करेगी जो एक देश, एक चुनाव की संभावना का पता लगाएगी।
शुरुआती चार चुनाव साथ हुए थे
दरअसल, आजादी के बाद से ही देश में वन नेशन-वन इलेक्शन की पॉलिसी लागू थी। राज्यों के साथ ही केंद्र सरकार के लिए चुनाव होते थे। शुरुआत के चार चुनाव ऐसे ही हुए थे। 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए। लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाओं को समय से पहले ही भंग कर दिया गया। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई। अब एक बार फिर केंद्र सरकार इसी दिशा में आगे बढ़ रही है, जिसके तहत यह कमेटी बनाई गई है।
खर्च में आ सकती है कमी
दरअसल, बीतते समय के साथ चुनावी खर्च में बेतहाशा वृद्धि हुई है। 1951-1952 लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इसके अलावा हर वक्त देश में कहीं न कहीं चुनावी लहर चलती ही रहती है। वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने से पूरे देश में चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी और विधानसभा व लोकसभा सभी चुनाव साथ होंगे।
राजनीतिक समर्थन और विरोध दोनों
वैसे तो केंद्र सरकार अपनी ओर से वन नेशन वन इलेक्शन की दिशा में आगे बढ़ चुकी है। लेकिन राजनीतिक तौर पर कई दल इसके खिलाफ हैं। AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी तो यहां तक कह चुके हैं कि यह गैर संवैधानिक है। तो बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने यह कहा है कि पहले वन नेशन वन इनकम करें, फिर इलेक्शन की बात करें। वहीं वन नेशन वन इलेक्शन के मुद्दे पर छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव केंद्र सरकार के समर्थन में खड़े दिख रहे हैं। उनका कहना है कि इस पॉलिसी का व्यक्तिगत तौर पर मैं समर्थन करता हूं और स्वागत भी करता हूं। हालांकि टीएस सिंहदेव का यह भी कहना है कि एक देश एक चुनाव का आइडिया कोई नई बात नहीं है। इस पर पहले से ही चर्चा होती रही है।