चांद पर पहुंचने के लिए भारत ने वो साउथ पोल चुना, जहां अभी तक कोई नहीं पहुंच सका। पृथ्वी पर मौजूद महाशक्ति कहे जाने वाले देश भी इस मिशन को पूरा नहीं कर सके हैं। रूस का पिछला प्रयास अभी पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे असफल हुआ। इससे पहले भारत का मिशन भी एक बार असफल हो चुका है। चंद्रयान का यह तीसरा मिशन है, जिस पर उम्मीदों का अंबार खड़ा है। वैसे अभी वक्त तो तीसरे मिशन का है लेकिन ऐसा नहीं है कि पहले के दो मिशन में हमने कुछ पाया नहीं है। भारत के पूर्व के दोनों चंद्रयान का मिशन पूरा नहीं लेकिन आंशिक सफल तो रहा ही है।
Mission Chandrayaan 3 : आज चांद पर पहुंचेगा हिंदुस्तान
मिशन मून पर जाने वाला भारत पांचवा देश बना
2003 में भारत सरकार ने चंद्रयान कार्यक्रम की घोषणा की। तब भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। अटल सरकार ने मिशन की घोषणा के लिए 15 अगस्त 2003 का दिन चुना। इसके बाद नवंबर 2003 में भारतीय मून मिशन के लिए इसरो के चंद्रयान-1 को मंजूरी दी। तैयारी 5 साल चली। इस बीच सरकार बदल चुकी थी और तब तक प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह बन चुके थे। भारत ने 22 अक्टूबर 2008 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान मिशन लॉन्च किया। उस समय तक केवल चार अन्य देश ही पहुंच सके थे। इनमें अमेरिका, रूस, यूरोप और जापान ही मिशन मून में सफल हो सके थे।
चंद्रयान 1 ने चांद पर ढूंढ़े पानी के अणु
वैसे तो भारत के मिशन मून को पूरा करने गए चंद्रयान 1 का सफर 24 दिन ही चला। इसके बाद 14 नवंबर 2008 को चंद्रयान-1 दुर्घटनाग्रस्त हो गया। लेकिन तब तक उसने चांद की सतह पर पानी के अणुओं की मौजूदगी की पुष्टि कर दी थी। चंद्रयान 1 जहां दुर्घटनाग्रस्त हुआ, वह दक्षिणी ध्रुव था। यह चांद का वही साइड है, जहां इस बार चंद्रयान 3 को उतारा जा रहा है। चंद्रयान-1 का डेटा इस्तेमाल करके चांद पर बर्फ की पुष्टि कर ली गई थी। इसके बाद 28 अगस्त 2009 को इसरो ने चंद्रयान-1 प्रोग्राम को आधिकारिक तौर पर समाप्त कर दिया। लेकिन इस पहले मिशन की सफलता ने आगे के लिए बहुत हौसला दिया।
10 साल बाद चंद्रयान 2 लांच
चंद्रयान 1 मिशन के समाप्त हो जाने के 10 साल बाद भारत ने चांद की ओर अपना अगला कदम बढ़ाया। 22 जुलाई, 2019 को श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-2 लॉन्च किया गया। शुरुआत जबरदस्त थी और ठीक 30वें दिन 20 अगस्त को चंद्रयान-2 अतंरिक्ष यान चांद की कक्षा में प्रवेश कर गया। लेकिन 02 सितंबर को चांद का चक्कर लगाते वक्त ही लैंडर ‘विक्रम’ अलग हो गया और सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई पर लैंडर का स्पेस सेंटर से संपर्क टूट गया। लेकिन इस मिशन ने इसरो और भारत को वो हौसला दे दिया, जिसकी उड़ान से चंद्रयान 3 की लांचिंग का आधार बना।