उत्तर प्रदेश के बाहुबली अतीक अहमद के गुनाह अदालत तक तो पहले भी पहुंचते थे, लेकिन फैसला पेंडिंग रह जाता था। अब उसके गुनाहों को अंजाम मिलने लगा है। पहली बार उसे दोषी करा दिया जा चुका है। सजा भी सुना दी गई है। कानून से उसे उम्र कैद की सजा मिली है। पांच बार विधायक और एक बार सांसद रहने के बाद भी अतीक पिछले 14 वर्षों से एक जीत को तरस रहा है। अपराध की दुनिया से आगे बढ़ते हुए अतीक ने लोकतंत्र को अपनी ढ़ाल तो बना ली लेकिन उस ढ़ाल की पकड़ पहले ही ढ़ीली पड़ चुकी है। कानूनी शिकंजा तो अतीक अहमद पर अब कसा है, लेकिन राजनीति की गलियों में वो ‘बदनाम’ पहले ही हो चुका है।
अतीक अहमद पर दर्ज पहली FIR से ‘राजनीतिक बाहुबल’ की उलटी गिनती तक, जानिए सबकुछ
लगातार पांच बार विधायक
पांच बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके अतीक अहमद के राजनीतिक कॅरियर की नैया, हार के बोझ से पहले से ही हांफ रही थी। उमेश पाल के अपहरण केस में दोषी करार दिए जाने के बाद यह पूरी तरह डूब गई। अतीक ने अपना आखिरी चुनाव 2009 में जीता था, उसके बाद उसकी राजनीतिक हालत पतली ही होती गई। राजनीति में आने से पहले से अतीक के दामन पर अपराध के दाग लग चुके थे।
पहली बार 1983 में 18 साल की उम्र में अतीक पर FIR हुआ। इसके बाद अतीक के आपराधिक गुनाहों की लिस्ट लंबी बनती गई। लेकिन अतीक जानता था कि अपने शरीर पर अपराध के धब्बों को वो राजनीतिक कुर्ते की सफेदी के पीछे छुपा सकता है। 1989 में उसने चुनाव लड़ा और विधायक बन गया। वह सीट थी इलाहाबाद वेस्ट। इसके बाद उसी सीट से 1991, 1993, 1996 और 2002 में अतीक लगातार पांच बार विधायक बना।
अपराधों का शतक के साथ राजनीतिक पतन
अतीक अपराध और राजनीति में एक साथ कदम बढ़ा रहा था। एक तरफ उसकी जीत के रिकॉर्ड बनने लगे तो दूसरी ओर थानों में उस पर आरोपों की संख्या शतक लगा गई। इसके बावजूद दिल्ली की राजनीति उसका निशाना थी, जिसे उसने पा भी लिया। 2004 में अतीक को पॉलिटिकल प्रमोशन मिला और तब विधायक अतीक, सांसद अतीक अहमद बन गया। लेकिन पांच बार विधायक रहे अतीक अहमद को दिल्ली की हवा रास नहीं आई और उसका राजनीतिक पतन शुरू हो गया।
पांच चुनावों से जीत को तरसा
इसके बाद पांच चुनाव में अतीक को शिकस्त मिल चुकी है। जिस इलाहाबाद वेस्ट की सीट से वो पांच बार विधायक बना, सांसद बनने के बाद उसी सीट से उसका भाई हार गया। ये उसकी पहली हार थी। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में उसने प्रतापगढ़ से अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़ा। 2014 में श्रावस्ती सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। 2018 में फूलपुर सीट के उपचुनाव में और 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर वाराणसी सीट से पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ा। लेकिन जीत किसी में भी नसीब नहीं हुई। श्रावस्ती को छोड़ दें तो लोकसभा के बाकी तीनों चुनावों में तो उसकी जमानत तक जब्त हो गई।