लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा हाल ही में की गई टिप्पणी कि विपक्ष ने “न्यायपालिका का काम” अपने ऊपर ले लिया है, पर भारत के पूर्व मुख्य न्यायधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका का काम केवल “कानूनों की जांच” करना है और इसे संसद या राज्य विधानसभाओं में विपक्ष की भूमिका निभाने का कोई अधिकार नहीं है।
एक साक्षात्कार में पूर्व CJI ने कहा, “लोकतंत्र में राजनीतिक विपक्ष के लिए एक अलग स्थान है। लोग यह नहीं मान सकते कि न्यायपालिका को संसद या विधानसभाओं में विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए। अक्सर यह गलत धारणा होती है कि न्यायपालिका को विधानसभाओं में विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए, जो कि सच नहीं है। हमारा काम कानूनों की जांच करना है और यह सुनिश्चित करना है कि ये संविधान के अनुरूप हैं।”
चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि लोगों की यह धारणा गलत है कि न्यायपालिका को राजनीतिक विपक्ष के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “हमें कार्यकारी कार्रवाई की जांच करने का दायित्व सौंपा गया है, और यह सुनिश्चित करना कि ये कानून और संविधान के अनुरूप हैं। लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका संसद और विधानसभाओं में होती है, न कि न्यायपालिका में।”
राहुल गांधी की एक टिप्पणी में कहा था, “हम अकेले मीडिया, जांच एजेंसियों और न्यायपालिका की ओर से भी काम कर रहे हैं। यह भारत की वास्तविकता है।” इस पर चंद्रचूड़ ने अपनी आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि न्यायपालिका को राजनीति से अलग रहकर अपने काम पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गणपति पूजा के दौरान पूर्व CJI के घर जाने को लेकर उठे विवाद पर भी चंद्रचूड़ ने अपनी राय दी। उन्होंने कहा कि यह “अनोखा” नहीं था और प्रधानमंत्री ने पहले भी सामाजिक अवसरों पर न्यायधीशों के घरों में शिरकत की थी। उन्होंने कहा, “यह एक सामाजिक शिष्टाचार का हिस्सा है। यह कोई नई बात नहीं है। प्रधानमंत्री ने पहले भी इस तरह के अवसरों पर न्यायाधीशों के घरों में भाग लिया है, कभी दुखद अवसरों पर भी।”
चंद्रचूड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि इन सामाजिक शिष्टाचारों का न्यायपालिका के कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ता। उन्होंने कहा, “हम जो काम करते हैं, उसमें हम एक-दूसरे से पूरी तरह स्वतंत्र हैं, और ये सामाजिक शिष्टाचार हमारे कामकाजी स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं करते हैं।”
इस विवाद की शुरुआत सितंबर में हुई थी, जब प्रधानमंत्री मोदी ने गणपति पूजा समारोह के दौरान भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के आवास का दौरा किया। इस पर विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने आलोचना करते हुए इसे संभावित हितों के टकराव के रूप में देखा।