बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार से समर्थन वापस लेकर बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है। 60 सीटों वाली मणिपुर विधानसभा में BJP के पास बहुमत से ज्यादा 32 सीटें हैं, लेकिन JDU के 6 विधायकों का समर्थन सरकार के साथ था। जेडीयू के इस फैसले से भले ही राज्य सरकार को कोई तात्कालिक खतरा न हो, लेकिन इसका राजनीतिक असर दिल्ली से पटना तक देखा जाएगा।
मणिपुर, जो बीते दो सालों से अशांत है, पहले ही BJP सरकार के लिए एक चुनौती बना हुआ है। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह पर हिंसा को नियंत्रित न कर पाने के आरोप लगते रहे हैं। कुकी और मैतेई समुदाय के बीच लंबे समय से जारी तनाव के बीच, जेडीयू का समर्थन वापस लेना भाजपा के लिए अप्रत्याशित झटका है।
नीतीश कुमार का यह फैसला न केवल मणिपुर की राजनीति, बल्कि बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है। विश्लेषकों का मानना है कि जेडीयू का यह कदम भाजपा पर सीट बंटवारे में दबाव बनाने की रणनीति हो सकता है। बिहार में इस साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, और यह फैसला गठबंधन के भीतर शक्ति संतुलन को दर्शाने का प्रयास भी माना जा सकता है।
मणिपुर में 2022 के विधानसभा चुनावों में जेडीयू को 6 सीटें मिली थीं, जो पार्टी के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। हालांकि, भाजपा सरकार में उनका समर्थन अब समाप्त हो गया है। जेडीयू के इस कदम के बाद, मणिपुर की विपक्षी कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दल इस फैसले को भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने के लिए भुनाने की कोशिश कर सकते हैं।
राज्य में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच का तनाव हिंसा में बदल चुका है। विवाद की शुरुआत गुवाहाटी हाई कोर्ट द्वारा मैतेई समुदाय को आदिवासी इलाकों में बसने की अनुमति देने से हुई थी। राज्य की ज्यादातर ग्रामीण आबादी कुकी समुदाय की है, जबकि मैतेई समुदाय शहरी इलाकों में केंद्रित है। इस तनाव के चलते एन. बीरेन सिंह की सरकार पर लगातार विपक्ष का दबाव बना हुआ है।
जेडीयू के समर्थन वापसी का असर भले ही मणिपुर सरकार पर सीधा न पड़े, लेकिन इसका संदेश दूरगामी हो सकता है। बिहार में भाजपा और जेडीयू के बीच सीट बंटवारे को लेकर तनाव की खबरें पहले से ही आ रही हैं। ऐसे में मणिपुर में नीतीश कुमार का यह कदम भाजपा पर दबाव बढ़ाने के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है।