कैंसर की बीमारी से जूझ रहे पत्रकार रवि प्रकाश का शुक्रवार, 20 सितंबर को निधन हो गया। जनवरी 2021 में उन्हें कैंसर डिटेक्ट हुआ था। लेकिन रवि प्रकाश ने तब से अब तक का कोई दिन उदास रहते हुए नहीं बिताया। वे खुश रहने और जीने की कोशिश करते रहे। अपने कैंसर से बातें करते रहे। हर साल कैंसर पता चलने की तारीख पर कैंसर को पत्र लिखते रहे। कैंसर लड़ने वाले क्या कमियां फेस करते हैं, वो दुनिया को बताते रहे। फोटो प्रदर्शनी लगाई, किताब लिखी, रिपोर्टिंग करते रहे। इस बीच छह दर्ज कीमो भी झेलते रहे। अमेरिका में इसी महीने उन्हें इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर द स्टडी ऑफ लंग कैंसर नाम की संस्था ने सम्मानित भी किया।
पढ़िए रवि प्रकाश की वो चिट्ठी जो उन्होंने कैंसर के नाम कैंसर का पता चलने के 3 वर्ष पूरा होने पर लिखी थी…
“तुम्हारे साथ रहते हुए आज पूरे 3 साल हुए। मतलब, एनीवर्सरी है आज। इन तीन सालों का साथ खट्टा-मीठा रहा है। शुक्रिया तुम्हारा, क्योंकि यह साथ सिर्फ़ खट्टा नहीं रहा। थोड़ी मिठास भी रही अपनी दोस्ती में।
हाँ, यह भी नहीं कह सकते कि तेरा साथ, साथ फूलों का। तुम अपने साथ सुईयों की चुभन लेकर आए। न जाने कितनी बार, किन-किन नसों में नुकीली सुईयों की आवाजाही हुई। यह सिलसिला जारी है। न जानें कितनी रातें हमने जगकर दर्द में गुजारीं। कितने दिन तड़पते रहे। कभी साँसें तेज होने लगीं, तो कभी लगा कि ये साँसें गायब होने वाली हैं। कभी अस्पताल के बेड पर नर्सें मुझे लेकर इधर-उधर भागती रहीं, तो कभी घर के बिस्तर पर भी सलीके की नींद नहीं आई। कभी इतनी गहरी नींद कि मेरी पत्नी को पूरी तरह डरा दिया। तब वे मुझे गहरी नींद से जगाकर इत्मीनान करती रहीं कि मैं ज़िंदा हूँ या नहीं। इस प्रक्रिया में मैं खीझता रहा। भावनाओं को समझता रहा। फिर मुस्कुराता भी रहा। तुम्हारे साथ रहते हुए यह सब हुआ।
इलाज में बेहिसाब पैसे लगे। मुंबई और राँची में में मेरे अस्पतालों की यात्राएँ इतनी फ्रिक्वेंट हुईं कि लगा सब्ज़ी ख़रीदने पास वाले चौराहे पर जा रहे हों। ‘पत्नी’ को ‘पिता’ बनते देखा, तो हिम्मत बढ़ी। फिर घर-परिवार के लोगों को बदलते देखा, तो निराशा भी हुई। आर्थिक इत्मीनान के लिए पुश्तैनी जमीनें बेची, तो समझ ही नहीं पाया कि पा रहा हूँ या गंवा रहा हूँ। फिर घर के लोगों को एक धुर-आधे धुर का हिसाब करते देखा, तो लगा कि अच्छा हुआ, जो जमीनें बेची।
एक-एक दिन की ज़िंदगी के लिए जद्दोजहद की, तो लगा कि मुट्ठी की रेत तेजी से फिसल रही है। फिर जब इसी जिंदगी को जीने लगे, तो लगा कि मजा सफर में ही है। यह गतिमान है। मंजिल तो दरअसल अंत की सूचक है।
तुम्हारी दोस्ती में मैंने बहुत कुछ गँवाया है। तुम मेरी ज़िंदगी में कई अनिश्चितताएं लेकर आए। क़ायदे से चल रही जिंदगी को लीज पर कर दिया। हम अगले हर एक मिनट की अनिश्चितता में जिंदा हैं। तुमने मुझपर पूरा कंट्रोल कर लिया है। कहीं जाना तुम्हारे हिसाब से। खाना तुम्हारे हिसाब से। दवा तुम्हारे हिसाब से। सबपर तुम्हारा कंट्रोल है। कभी खूब भूख लगी, तो कभी खाना देखते ही उल्टी। कभी डायरिया, तो कभी कब्ज। क्या-क्या न दिखाया है तुम्हारे साथ ने।
तुम्हारे आने के बाद मेरे कुछ सपने मर गए। मैं राँची में आज भी किराए के घर में रहता हूँ। अपना घर लेने का सपना था। अब इस सपने को बक्से में बंद कर दिया है। मेरे बेटे की शादी होगी, तो मैं सारे इंतज़ाम करूँगा। कभी अपने पोते-पोतियों को स्कूल बस तक छोड़ने जाऊँगा। यह सब अब शायद संभव नहीं हो पाएगा। क्योंकि, तुमने मेरे टिकट को उस दुनिया की यात्रा के वेटिंग लिस्ट में डाल रखा है। टिकट कन्फर्म होते ही मुझे उस यात्रा पर जाना है, जहाँ मैं जाना नहीं चाहता।
फिर भी तुम्हारा शुक्रिया। काश, यह टिकट लंबे वक्त तक वेटिंग लिस्ट में रहे या वह यात्रा ही कैंसिल हो जाए।
काश, हमारा साथ कुछ और सालों तक बना रहे।”