चुनावी बॉन्ड की कानूनी वैथता पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाना शुरू कर चुकी है। चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुना दिया है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताया और सरकार को किसी अन्य विकल्प पर विचार करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की आलोचना करते हुए कहा कि राजनीतिक पार्टियों को हो रही फंडिंग की जानकारी मिलना बेहद जरूरी है। इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा है कि लोगों को भी इस बारे में जानने का अधिकार है। बड़े चंदे गोपनीय रखना असंवैधानिक है। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड ने कहा कि यह सर्वसम्मत फैसला है। उन्होंने कहा कि एक विकल्प मेरे पास है और दूसरा जस्टिस संजीव खन्ना के पास लेकिन दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। सीजेआई ने कहा है कि क्या 19(1) के तहत सूचना के अधिकार में राजनीतिक फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार शामिल है? सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इस अदालत ने सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों के बारे में जानकारी के अधिकार को मान्यता दी और यह केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सहभागी लोकतंत्र सिद्धांत को आगे बढ़ाने तक सीमित है।
CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने पिछले साल 2 नवंबर को उक्त मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं। मालूम हो कि साल 2017 में वर्तमान केंद्र सरकार ने इस बांड योजना की शुरुआत की थी। दरअसल, इसे राजनीतिक दलों को की जाने वाली फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए पेश किया गया था।
गौरतलब हो कि राजनीतिक पार्टियों को नकद के रूप में दिए गए चंदे का लेखा जोखा या कोई रिकॉर्ड रख पाना मुश्किल है। ऐसे में बांड के रूप में ये काल्पनिक मुद्रा निश्चित रूप से पारदर्शिता रखते हुए कई पार्टियों के खाते में डाली गयी राशि का रिकॉर्ड सुरक्षित रख सकता है। कोई भी व्यक्ति या संस्था जिस पार्टी को चंदा देना चाहता है, वह ये चुनावी बांड खरीदकर राजनीतिक पार्टी को दे सकते हैं। खास बात ये है कि बांड में चंदा देने वाले को अपना नाम नहीं लिखना पड़ता। ये चुनावी बांड SBI की कुछ चुनिंदा शाखाओं में मिलते हैं जिसे कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था खरीद सकती है। ये बांड 1 हज़ार, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ रुपये के रेंज में आते हैं। हालांकि, इन बांड को सिर्फ वे ही राजनीतिक दल प्राप्त कर सकते हैं, जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत रजिस्टर्ड हैं और जिन्हें पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में एक प्रतिशत से अधिक वोट मिले हों।
सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड की वैधता पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) समेत कुल चार याचिकाएं दाखिल की गई हैं। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि चुनावी बांड के जरिए हुई गुमनामी राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती है और वोटर्स के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है। उनका दावा है कि इस योजना में शेल कंपनियों के माध्यम से दान देने की अनुमति दी गई है।