राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता रद्द हो गई है। वायनाड से सांसद व कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी अब कानूनी अपराधी हो चुके हैं। सूरत की एक अदालत ने उन्हें मानहानि के एक मामले में सजा सुनाते हुए दो साल की सजा सुना दी थी। अब खतरा राहुल गांधी के चुनावी राजनीतिक करियर पर है। क्योंकि जनप्रतिनिधित्व कानून में मौजूद प्रावधान के मुताबिक “दो साल या उससे ज्यादा की सजा पाने वाला व्यक्ति दोष सिद्धि की तिथि से अयोग्य हो जाता है और सजा पूरी होने के छह साल बाद तक अयोग्य रहता है।”
इस बयान को लेकर सुनाई गई सजा
दरअसल जिस मामले में राहुल गांधी को सजा सुनाई गई है और उनकी सदस्यता रद्द की गई है वो साल 2019 में उनके द्वारा दिए गए एक बयान से जुड़ा है। साल 2019 में राहुल गांधी ने कर्नाटक में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘सभी चोरों का नाम मोदी ही क्यों होता है?’ इस बयान को लेकर भाजपा नेता पूर्णेश मोदी ने मानहानी केस दर्ज कराया था। इसी मामले में गुजरात के सूरत की जिला अदालत ने राहुल गांधी को दोषी करार देते हुए 2 साल कैद की सजा सुनाई है। हालांकि उन्हें बेल मिल गई हैं। उपरी अदालत में अपील करने के लिए उन्हें एक महीने का समय दिया गया है।
सदस्यता खत्म, चुनाव लड़ने पर भी लग सकती है रोक
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द की गई है। वहीं अब उनके चुनाव लड़ने पर भी खतरे के काले बादल मंडरा रहे हैं। दरअसल लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के मुताबिक कई ऐसे प्रावधान हैं जिसके तहत किसी भी सांसद या विधायक की सदस्यता रद्द हो सकती है। जिसमें से एक प्रावधान अपराधिक मामलों में सजा पाने वाले सांसद या विधायक की सदस्यता रद्द का भी है। यदि सजा दो या दो साल से ज्यादा की होती है तो उस सांसद या विधायक की सजा की अवधि पूरी होने के अगले 6 साल तक वो चुनाव नहीं लड़ सकता।
चूंकि राहुल गांधी को 2 साल की सजा सुनाई गई है इसलिए उनपर चुनाव ना लड़ सकने वाला प्रावधान लागू होता है। अब राहुल गांधी पास अपनी सदस्यता को बचाने का एक ही उपाय है, हाईकोर्ट में अपील करना। यदि हाईकोर्ट सजा को निलंबित कर देती है तो उनकी सदस्यता वापस से बहाल हो सकती है।
10 साल पहले फाड़ा था अध्यादेश, जो आज बचा सकता था
राहुल गांधी ने 10 साल पहले यानी साल 2013 में एक अध्यादेश फाड़ दिया था। वो अध्यादेश अगर लागू हो गया होता तो आज राहुल गांधी की राजनीतिक भविष्य के लिए संजीवनी साबित होता। दरअसल साल 2013 में यूपीए सरकार ने एक अध्यादेश लाया था। जिसका उद्देश्य सजा मिलने पर सांसद या विधायक की सदस्यता रद्द किए जाने वाले प्रावधान को निरस्त करना था। लेकिन इस अध्यादेश का भाजपा और लेफ्ट सहित कई विपक्षी पार्टियों ने जमकर विरोध किया था। इस अध्यादेश को भ्रष्टाचारियों को बचाने का वाला बताया था।
खुद राहुल गांधी भी इस अध्यादेश के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस कर इस अध्यादेश को बकवास बताया था और इसकी एक कॉपी को मीडिया के सामने ही फाड़ दिया था। जिस वक्त ये हुआ उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिका के दौरे पर थे। जब वो भारत लौटे तब राहुल गांधी ने उन्हें पत्र लिखकर इस अध्यादेश के प्रति अपना पक्ष रखा। जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस अध्यादेश को वापस ले लिया था।