एक जुलाई से लागू होने वाले नए कानून के तहत अब पुलिस अधिकारियों की मनमानी नहीं चलेगी। नए कानून के तहत जीरो एफआईआर दर्ज करने की प्रथा को संस्थागत रूप दिया गया है, जिससे एफआईआर कहीं भी दर्ज की जा सकती है, चाहे घटना कहीं भी हुई हो। पीड़ित के सूचना के अधिकार को मजबूत किया गया है, जिससे उन्हें एफआईआर की मुफ्त कॉपी पाने का अधिकार मिलेगा और 90 दिनों के अंदर जांच की स्थिति के बारे में सूचित करने का प्रावधान भी है।
अब 90 दिनों के अंदर चार्जशीट दाखिल करनी होगी और कोर्ट परिस्थिति को देखते हुए 90 दिनों के लिए अनुमति दे सकता है। जांच को हर हाल में 180 दिनों में पूरी कर ट्रायल के लिए भेजना होगा। इसके साथ ही पुलिस को 90 दिनों के अंदर केस का स्टेटस अपडेट देना होगा। ट्रायल के बाद 30 दिनों में फैसला सुनाना होगा और इसे एक हफ्ते के अंदर ऑनलाइन अपलोड करना होगा। तीन साल से कम सजा वाले मामलों के लिए समरी ट्रायल ही काफी होगा। त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष कोर्ट की स्थापना की जाएगी।
यौन अपराधों पर सख्ती
भारतीय न्याय संहिता ने यौन अपराधों पर सख्ती बरती है। 18 वर्ष से कम उम्र की किशोरियों के साथ बलात्कार पर आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। नाबालिग के साथ सामूहिक बलात्कार के प्रावधान को पॉक्सो अधिनियम के अनुरूप बनाया गया है। कानून के अनुसार, बलात्कार करने वाले को कम से कम 10 साल के कठोर कारावास की सजा दी जाएगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी देना होगा। गैंग रेप के मामलों में 20 साल की कैद या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।
गंभीर अपराध की नई परिभाषा
अब शादी, नौकरी, पदोन्नति या पहचान छिपाकर महिलाओं का यौन शोषण करना गंभीर अपराध माना जाएगा, जिसके तहत कम से कम 10 साल की सजा का प्रावधान है।
मॉब लिंचिंग के लिए सख्त सजा
पहली बार, विधेयक में भीड़ द्वारा हत्या और घृणा अपराधों को अलग-अलग प्रकार की हत्या के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इस अधिनियम में भीड़ द्वारा हत्या जैसे अपराधों के लिए अधिकतम मृत्युदंड देने का प्रावधान है।
डिजिटल साक्ष्य पर जोर
नए कानून के तहत अब लोगों को डिजिटल साक्ष्य पर विशेष ध्यान देना होगा। पुलिस को निर्धारित समय में जांच रिपोर्ट कोर्ट में जमा करनी होगी, जिससे पीड़ितों को इंसाफ दिलाने में समय कम लगेगा।