‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ विधेयक को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। शुक्रवार को कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया, जिसके बाद सदन में जोरदार बहस छिड़ गई। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), समाजवादी पार्टी (सपा) समेत कई विपक्षी दलों ने इस विधेयक का कड़ा विरोध किया है। वहीं, भाजपा के सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) समेत कुछ अन्य दलों ने इसका समर्थन किया है।
सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने इस विधेयक को तानाशाही करार देते हुए कहा, “आखिर इस बिल (वन नेशन, वन इलेक्शन) की जरूरत ही क्या है? यह तो तानाशाही को थोपने की कोशिश है।” सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी इस विधेयक का विरोध किया। उन्होंने कहा कि ‘एक’ की भावना तानाशाही की ओर ले जाने वाली है। यह संघीय लोकतंत्र को कमजोर करेगा और संघवाद के सिद्धांत को खत्म करने का प्रयास है।
कांग्रेस ने इस विधेयक (One Nation, One Election) पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। पार्टी नेता मनीष तिवारी ने सवाल उठाते हुए कहा कि “यदि लोकसभा चुनाव में बहुमत नहीं मिलता है, तो क्या पूरे देश का चुनाव करवाया जाएगा? इससे बड़ी संख्या में विधानसभाओं को भंग करना पड़ेगा और सरकारों को बर्खास्त करना होगा।” कांग्रेस ने इसे संघीय ढांचे और संविधान की आत्मा पर चोट बताया।
हालांकि, भाजपा को इस विधेयक पर अपने अहम सहयोगी जनता दल यूनाइटेड का समर्थन मिला है। जेडीयू नेता संजय कुमार झा ने कहा, “हम तो हमेशा से कहते रहे हैं कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ होने चाहिए। इससे चुनावी खर्च में कमी आएगी और सरकार हमेशा इलेक्शन मोड में नहीं रहेगी।” उन्होंने आगे कहा कि “जब देश में चुनाव की शुरुआत हुई थी, तब भी चुनाव एक साथ होते थे। 1967 के बाद कांग्रेस के राष्ट्रपति शासन के फैसलों के कारण यह परंपरा टूट गई।”
डिबेट के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने भी विपक्ष पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि “कांग्रेस को बहस का मतलब सिर्फ विरोध ही पता है। अगर कोई चीज देश हित में है, तो उसका समर्थन क्यों नहीं किया जा सकता?”
‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक को अपना दल, अकाली दल, जनता दल यूनाइटेड और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (TDP) ने समर्थन दिया है। वहीं, कांग्रेस, सपा, टीएमसी और अन्य विपक्षी दल इसके खिलाफ एकजुट नजर आ रहे हैं।