भगवतगीता में एक श्लोक है ”अवश्यमेव भोक्तव्यं कर्म कृतं शुभाशुभम” जिसका अर्थ ‘व्यक्ति को अपने किए हुए शुभ और अशुभ सभी कर्मों का फल अवश्य ही भोगना पड़ा है।’ ये श्लोक कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए बिल्कुल चरितार्थ होती हुई दिख रही है। जिस तरह का राजनीतिक घटना क्रम पिछले दो दिनों में राहुल गांधी के राजनीतिक जीवन में घटित हुआ है। वो उनके कर्मों का ही फल है। बीते दिन मानहानि केस में सजा होना और फिर आज लोकसभा की सदस्यता खत्म हो जाना। ये दोनों ही फल उनके पूर्व में किए गए दो कर्मों का नतीजा है जो अब वो भुगत रहे हैं।
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द, चुनाव लड़ने पर भी लग सकती है रोक
4 साल पहले किए कर्म की मिली सजा
राहुल गांधी को मानहानी केस में दो साल की सजा सुनाई गई है। बीते दिन को गुजरात के सूरत की जिला अदालत राहुल गांधी को मानहानि केस में राहुल को दोषी करार देते हुए 2 साल कैद की सजा सुनाई। दरअसल जिस मामले में राहुल गांधी को सजा सुनाई गई है वो मामला चार साल पुराना हैं। साल 2019 में राहुल गांधी ने कर्नाटक में एक जनसभा को संबोधित करते हुए एक बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि ‘सभी चोरों का नाम मोदी ही क्यों होता है?’ इसी बयान को लेकर भाजपा नेता पूर्णेश मोदी ने मानहानी केस दर्ज कराया था। जिसमें बीते दिन गुरुवार को जिला अदालत ने फैसला सुनाया और राहुल गांधी पर 15 हजार का जुर्माना के साथ दो साल की सजा सुनाई है।
10 साल पहले किए कर्म का फल- ‘सदस्यता खत्म’
2 साल की सजा सुनाये जाने के बाद आज राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता भी रद्द हो गई है। उनकी सदस्यता लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत रद्द की गई है। दरअसल इस अधिनयम के अनुसार जिस भी सांसद या विधायक को दो या दो साल से अधिक सजा होती है उसकी सदस्यता रद्द करने का प्रावधान है। लेकिन खास बात ये है कि राहुल गांधी इससे बच सकते थे लेकिन उनके 10 साल पुराने कर्म का ने उन्हें फंसा दिया। दरअसल साल 2013 में यूपीए सरकार की तरफ से एक अध्यादेश लाया गया था। जिसका उद्देश्य सजा मिलने पर सांसद या विधायक की सदस्यता रद्द किए जाने वाले प्रावधान को निरस्त करना था।
लेकिन राहुल गांधी ही इस अध्यादेश को लेकर अपनी सरकार के विरोध में उतर गए थे। उन्होंने एक प्रेस कांफ्रेंस कर इस अध्यादेश को बकवास बताया था साथ ही मीडिया के सामने इस अध्यादेश की एक कॉपी को भी फाड़ दिया था। तब राहुल गांधी को ये अंदाजा नहीं रहा होगा कि ये अध्यादेश एक दिन उनके भी काम आ सकता है। राहुल गांधी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को खत लिखकर इस अध्यादेश पर अपना पक्ष रखा था। जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अध्यादेश को वापस ले लिया था। यदि वो अध्यादेश लागू हो गया होता तो आज राहुल गांधी की सदस्यता रद्द नहीं होती।