समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का आज यानि 10 अक्टूबर को निधन हो गया। वो कई दशकों तक राजनीति में सक्रीय रहे। इस दौरान वो तीन बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे। और साल 1996-1998 तक भारत के रक्षा मंत्री भी रहे। मुलायम सिंह यादव के नाम में सिर्फ मुलायम था पर वो कठोर फैसले लेने के लिए जाने जाते थे। अपने राजनीतिक कैरियर में उन्होंने कई ऐसे कठोर राजनीतिक फैसले लिया था। ऐसे फैसले जो किसी और के लिए लेना उतना आसान नहीं नहीं होता। उनके इन फैसलों कई बार उनकी तारीफ हुई तो कई बार वो विवादों से घिर गए। उनके कुछ ऐसे ही कठोर फैसलों के बारे में आपको बताएँगे।
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कारसेवकों पर गोली चलवाने का फैसला
मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक फैसलों में सबसे कठोर फैसला अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाना था। जिस फैसले जो लेकर विवाद ने हमेशा के लिए उनके नाम से जुड़ गया। घटना साल 1990 की है जब कारसेवक बाबरी मस्जिद के काफी हनुमानगढ़ी के पास पहुंच गए थे। उस वक्त उनपर यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव गोली चलने का निर्णय लिया था। जिसके बाद दो दिन कर सेवकों पर पुलिस ने गोली चलायी। पहली बार 30 अक्टूबर, 1990 को और दूसरी बार 2 नवंबर 1990 को गोली चलायी गई। जिसमें कई कारसेवकों की मौत हो गई। हालाकिं इस फैसले को लेकर मुलायम सिंह यादव जब भी सवाल किया गया तब उन्होंने यही कहा कि देश की एकता को बचाने के लिए ही उन्होंने ये फैसला लिया। इस फैसले के बाद उनकी छवि मुस्लिम परस्त वाली बन गई । उनके विरोधियों ने तो उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ तक कहा।
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BSP से गठबंधन करने का फैसला
साल 1992 को बाबरी मस्जिद गिरने के बाद साल1993 में यूपी में विधानसभा चुनाव हुआ। जिसमें मुलायम सिंह ने कांशीराम की पार्टी बसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा।उनका ये फैसला मील का पत्थर साबित हुआ। मुलायम के इस फैसले से राम लहर में चुनाव जीतने की कोशिश कर रही बीजेपी चारों खाने चित्त हो गई। उस वक्त ये नारा भी लगता था कि ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’ । हालांकि कांशीराम की मृत्यु के बाद ये गठबंधन टूट गया। लेकिन मुलायम सिंह यादव का राम लहर के दौर में बसपा से गठबंधन करने का फैसला हमेशा याद रखा जाएगा।
अमर सिंह को पार्टी से निकालें का फैसला
मुलायम सिंह यादव अपने काफी करीबी कद्दावर नेता अमर सिंह को पार्टी से निकल दिया था। उनका ये फैसला भी काफी कठोर मना जाता है। अमर सिंह फरवरी 2010 में पार्टी से निकले गए। हालांकि इससे पहले वो पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे चुके थे। अमर सिंह ऐसे नेता थे जिनके कारण कई भरोसमंद समाजवादी नेताओं से मुलायम सिंह यादव को हाथ धोना पड़ गया था। इसलिए अमर सिंह को पार्टी से निकले का फैसला काफी चौंकाने वाला था। उनके इस फैसले के बाद कई लोग मुलायम सिंह यादव पर ये भी तंज करते थे कि ‘सब कुछ लुटा कर होश में आए तो क्या किया।’
बेटे को मुख्यमंत्री बनने का फैसला
साल 2012 में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी वादी पार्टी की बड़ी जीत हुई। जिसके बाद ऐसा लग रहा था कि मुलायम सिंह यादव चौथी बार यूपी के मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन मुलायम सिंह यादव ने एकबार फिर से अपने फैसले से सभी को चौंका दिया। उनका ये फैसला अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाना था। हालाकिं आगे चलकर ये फैसला उनके परिवार में ही आपसी राजनीतिक कलह का कारण बना। उनके भाई शिवपाल यादव और बेटे अखिलेश की बीच हुई सियासी तनातनी हुई वो जगजाहिर है। पार्टी के वर्चस्व को लेकर भी लेकर भी लड़ाई हुई जिसमें अखिलेश यादव ने अपाने पिता को हटा कर खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। पर जो भी हो मुलायम के फैसले ने उनके बेटे को राजनीति में स्थापित कर दिया।
शहीदों का शव परिवारवालों को देने का फैसला
मुलायम सिंह यादव साल 1996-1998 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे थे। इस दौरान उन्होंने एक बहुत बड़ा फैसला लिया जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। उन्होंने ही के शव को सम्मान के साथ परिवारवालों सौंपने का फैसला किया था। तभी से शहीदों का शव उनके परिवारवालों को सौंपा जाने लगा। वरना इससे पहले शहीदों का सिर्फ टोपी ही उनके अपरिवर को सौंपा जाता था।