पिछले कुछ वक्त में चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर कुछ राजनीतिक दलों ने सवाल उठाए हैं। चुनाव आयोग वैसे तो संवैधानिक संस्था है जो स्वायत्त है। लेकिन इसके बावजूद इस पर सवाल उठाए गए हैं। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर एक फैसला किया है। यह फैसला अन्य चुनाव आयुक्तों के साथ मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया में भी प्रभावी होगा।
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संविधान पीठ का फैसला
चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर दायर याचिका की सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ ने की है। इसमें जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार शामिल हैं। पीठ ने फैसला दिया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति PM, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और CJI का पैनल करेगा। यह कमेटी नामों की सिफारिश राष्ट्रपति को करेगी।
संसद के कानून बनाने तक नई प्रक्रिया
चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पहले सिर्फ केंद्र सरकार करती थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह प्रक्रिया बदल गई है। कोर्ट ने आदेश में साफ कहा कि यह प्रक्रिया तब तक लागू रहेगी, जब तक संसद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं बना लेती। सुप्रीम कोर्ट ने नए कानून को लेकर भी अपनी टिप्पणी दी है। इसमें कोर्ट का कहना है कि चयन प्रक्रिया CBI डायरेक्टर की तर्ज पर होनी चाहिए।
मौजूदा नियुक्ति प्रक्रिया
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति की ओर से की जाती है। आमतौर केंद्र सरकार की सिफारिश को ही राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाती है। यही कारण है कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। चुनाव आयुक्त का कार्यकाल अधिकतम 6 साल या फिर 65 वर्ष की आयु तक के लिए होता है।