तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने अमेरिका में अडानी समूह पर लगे घूस के आरोपों के बाद राज्य सरकार द्वारा प्राप्त 100 करोड़ रुपये के फंड को लौटाने का फैसला किया है। यह फंड यंग इंडिया स्किल यूनिवर्सिटी के लिए अडानी समूह से प्राप्त किया गया था, जिसे अब सरकार ने स्वीकार नहीं करने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री के. रेवंत रेड्डी ने इस संबंध में अडानी समूह को एक पत्र भी भेजा है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को किसी भी संस्था से फंड स्वीकार नहीं करना चाहिए।
मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कहा, “तेलंगाना सरकार ने अडानी समूह से यंग इंडिया स्किल यूनिवर्सिटी के लिए कोई धनराशि या दान नहीं लिया है। हमने अडानी समूह को यह पत्र भेजकर कहा है कि हम उनके द्वारा दी गई 100 करोड़ रुपये की राशि को स्वीकार नहीं करेंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार का यह निर्णय पूरी तरह से पारदर्शी और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अनुरूप है। रेवंत रेड्डी ने कहा, “हमने राहुल गांधी के नेतृत्व में यह सुनिश्चित किया है कि टेंडर्स लोकतांत्रिक तरीके से, सही प्रक्रिया के तहत आवंटित किए जाएं, चाहे वह अडानी हो, अंबानी हो या टाटा।”
गौरतलब है कि 18 अक्टूबर को गौतम अडानी ने यंग इंडिया स्किल यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी को 100 करोड़ रुपये का चेक सौंपा था। इस फंड के देने के बाद विपक्षी दलों ने कांग्रेस की आलोचना शुरू कर दी थी। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने कांग्रेस पर अडानी समूह के खिलाफ अपने रुख में दोहरी नीति अपनाने का आरोप लगाया। बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कहा, “राहुल गांधी दिन-रात ‘अडानी-अडानी’ का नारा लगाते हैं, लेकिन तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी अडानी से पैसे स्वीकार करते हैं।”
इस बीच, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अडानी समूह के खिलाफ विपक्ष की आपत्ति को संसद में उठाने की कोशिश की। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अडानी समूह को ठेके दिलाने में मदद कर रहे हैं, और यह वित्तीय अनियमितताओं का एक गंभीर मामला है। खरगे ने कहा, “अडानी समूह पर रिश्वत और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। इस मामले पर संसद में चर्चा होनी चाहिए, ताकि देश की छवि को बचाया जा सके।”
अडानी समूह ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है और उन्हें नकारा है। लेकिन तेलंगाना सरकार के फैसले ने इस मुद्दे को और गर्म कर दिया है। अब देखना यह होगा कि क्या कांग्रेस पार्टी अपने इस फैसले को लेकर विपक्ष और जनता को सही तरीके से समझा पाती है और क्या यह मामला आगे बढ़ने के साथ अन्य राज्यों में भी सियासी हलचल का कारण बनेगा।