पूरे देश में आज 1 जुलाई से तीन नए आपराधिक कानून लागू हो रहे हैं। वहीं, आईपीसी और सीपीआरपीसी के कानून की आज से छुट्टी हो जाएगी। नए कानून के लागू होने से किसी भी क्राइम की एफआईआर किसी भी थाने में दर्ज की जा सकेगी। लेकिन इस कानून को लेकर विपक्ष की अलग राय है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर पोस्ट कर लिखा कि IPC, CPC एवं एविडेंस एक्ट की जगह पर 1 जुलाई से लागू हो रहे भारतीय न्याय संहिता को व्यापक रिव्यू की आवश्यकता है। पूर्व सीएम ने आगे लिखा कि इस संहिता में बनाए गए कानून देश को एक पुलिसिया राज्य (पुलिस स्टेट) बनाने जैसे हैं। इन कानूनों को नए सांसदों द्वारा बनने वाली समिति को व्यापक समीक्षा के लिए भेजकर सभी हितधारकों की राय ली जानी चाहिए।
3 नए आपराधिक कानूनों पर कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा, “…ये कानून इस देश में पुलिस राज की स्थापना करेंगे। ये आज से दो सामानांतर फौजदारी की प्रणालियों को जन्म देंगे। 30 जून 2024 की रात 12 बजे तक जो फौजदारी के मुकदमे लिखे गए हैं और अदालतों के संज्ञान में हैं, उन पर पुराने कानूनों के तहत कार्रवाई होगी। जो मामले 30 जून के बाद दर्ज किए जाएंगे उसमें नए कानून के तहत कार्रवाई होगी। भारत की जो न्यायिक प्रणाली है उसमें 3.4 करोड़ मामले लंबित हैं जिसमें से अधिकतर फौजदारी के मुकदमे हैं इसलिए इससे एक बहुत बड़ा संकट आने वाला है… इन कानूनों को संसद के समक्ष दोबारा रख कर एक संयुक्त संसदीय समिति के सामने भेजने के बाद फिर क्रियान्वयन के लिए भेजा जाना चाहिए…”
कांग्रेस सांसद शशि थरुर ने कहा, “हमारी चिंता यह थी कि संसद में इस पर पूरी तरह से चर्चा नहीं हुई क्योंकि पूरा विपक्ष निलंबित था…यह ऐसी बड़ी बात है जो हर किसी के जीवन को प्रभावित करती है और जिस तरह से हमारा देश आपराधिक क्षेत्र में काम करता है, उसे प्रभावित करती है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम संसद में इस पर चर्चा करें…”
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AAP नेता राघव चड्ढा ने कहा, “पहले इसका एक रिव्यू होना चाहिए…कानून को इतने आनन-फानन में लागू नहीं करना चाहिए। इसके बड़े दूरगामी परिणाम है।” वहीं दिल्ली के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा,” मेरा मानना है कि कानूनों में कोई खामी नहीं थी। खामियां उनके कार्या न्वयन में, जांच एजेंसियों में हैं, पुलिस उन कानूनों पर कार्रवाई नहीं करती…मुझे लगता है कि नए कानूनों के साथ आने वाले कई वर्षों तक बहुत भ्रम रहेगा। एक आम नागरिक जिसने बड़ी मुश्किल से कुछ कानूनों को समझा है, उसे अपना केस दर्ज कराने में दिक्कत आएगी। मुझे लगता है कि इससे पुलिस की मनमानी को बढ़ावा मिलेगा।”
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शिवसेना(UBT) की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, “…जब ये बिल संसदीय स्थायी समिति में लाया गया था तो सदस्यों ने इस पर आपत्ति जताई थी और उसमें क्या कमियां हैं वो सामने रखी थीं लेकिन उसमें कोई बदलाव नहीं किया गया… 145 विपक्ष के सांसदों को निलंबित कर दिया गया था… हम चाहते थे इस पर चर्चा हो… ” समाजवादी पार्टी सांसद डिंपल यादव ने कहा, “यह कानून बहुत गलत तरीके से संसद में पास किए गए हैं। इन कानूनों पर कोई चर्चा नहीं है… अगर कोई विदेशों में भी अपने अधिकारों को लेकर विरोध करता है तो उन पर भी ये कानून लागू होंगे। कहीं न कहीं यह कानून पूरे देशवासियों पर शिकंजा कसने की तैयारी है।”