NDA Politics: बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है और इस बार निशाने पर विपक्ष नहीं, बल्कि खुद एनडीए का अंदरूनी समीकरण है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के भीतर चल रही खामोश प्रतिस्पर्धा अब खुलकर सामने आने लगी है। ताजा घटनाक्रम में राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए के ही सहयोगी दल लोजपा (रामविलास) को बड़ा झटका दिया है। चिराग पासवान की पार्टी के कई दिग्गज और प्रभावशाली नेता अब लोजपा (रामविलास) को अलविदा कहकर राष्ट्रीय लोक मोर्चा का दामन थाम चुके हैं।
इस राजनीतिक घटनाक्रम को केवल दल-बदल के रूप में देखना जल्दबाजी होगी। दरअसल, यह एनडीए के भीतर नेतृत्व, भविष्य की राजनीति और क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर बढ़ती प्रतिस्पर्धा का संकेत माना जा रहा है। जिस तरह से उपेंद्र कुशवाहा ने एक के बाद एक नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराया है, उससे यह साफ है कि गठबंधन के अंदर ही दल अपने-अपने जनाधार और संगठन को मजबूत करने की जंग में उतर चुके हैं।
राष्ट्रीय लोक मोर्चा में शामिल होने वाले नेताओं में सबसे बड़ा नाम लोजपा (रामविलास) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और मुख्य प्रवक्ता रहे ए के वाजपेयी का है। ए के वाजपेयी लंबे समय तक चिराग पासवान के करीबी माने जाते रहे हैं और पार्टी की रणनीति से लेकर मीडिया मैनेजमेंट तक में उनकी अहम भूमिका रही है। उनके साथ कई अन्य नेताओं की भी राष्ट्रीय लोक मोर्चा में एंट्री हुई है, जिसने लोजपा (रामविलास) के अंदर असहजता बढ़ा दी है।
इन नेताओं को पार्टी की सदस्यता दिलाते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने इसे राष्ट्रीय लोक मोर्चा के लिए संगठनात्मक मजबूती की दिशा में बड़ा कदम बताया। उन्होंने कहा कि नए नेताओं के जुड़ने से पार्टी केवल बिहार तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में भी संगठन को मजबूती मिलेगी। कुशवाहा के इस बयान को साफ तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पार्टी के विस्तार की मंशा के रूप में देखा जा रहा है।
उपेंद्र कुशवाहा ने यह भी संकेत दिया कि राष्ट्रीय लोक मोर्चा अब केवल एक क्षेत्रीय दल की भूमिका में नहीं रहना चाहता। उनका कहना है कि अनुभवी नेताओं के जुड़ने से पार्टी का जनाधार बढ़ेगा और एनडीए के भीतर उनकी राजनीतिक हैसियत और मजबूत होगी। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, यह बयान सीधे-सीधे चिराग पासवान की उस रणनीति को चुनौती देता है, जिसमें वह खुद को एनडीए में युवा और उभरते चेहरे के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि लोजपा (रामविलास) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा, दोनों ही एनडीए का हिस्सा हैं। ऐसे में एक सहयोगी दल से दूसरे सहयोगी दल में नेताओं का जाना एनडीए के भीतर असहज सवाल खड़े कर रहा है। क्या यह सब शीर्ष नेतृत्व की सहमति से हो रहा है या फिर यह गठबंधन के अंदर बढ़ती खींचतान का नतीजा है? इस सवाल पर उपेंद्र कुशवाहा ने खुद को अलग रखते हुए कहा कि इसमें उनकी कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है और नेताओं ने अपने विवेक से फैसला लिया है।
ए के वाजपेयी के पार्टी बदलने को लेकर कुशवाहा ने एक अहम टिप्पणी भी की। उन्होंने कहा कि अगर ये नेता एनडीए के दायरे में नहीं आते, तो इसका नुकसान खुद एनडीए को होता। उनके इस बयान को राजनीतिक संदेश के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमें वह यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि राष्ट्रीय लोक मोर्चा एनडीए के लिए नुकसान नहीं, बल्कि मजबूती का कारण है।
हालांकि, राजनीतिक गलियारों में यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या यह घटनाक्रम चिराग पासवान की बढ़ती लोकप्रियता और उनकी पार्टी के भीतर असंतोष का नतीजा है। बीते कुछ समय से लोजपा (रामविलास) में अंदरूनी मतभेद की खबरें सामने आती रही हैं। कुछ नेताओं का मानना है कि पार्टी पूरी तरह चिराग पासवान के इर्द-गिर्द सिमटती जा रही है, जिससे पुराने और अनुभवी नेताओं को हाशिये पर महसूस हो रहा है।






















