निर्मली विधानसभा, निर्वाचन क्षेत्र संख्या-41 (Nirmali Vidhansabha) बिहार की राजनीति में एक अहम सीट मानी जाती है। सुपौल जिले के अंतर्गत आने वाली यह सीट लंबे समय तक चुनावी नक्शे से बाहर रही। 1951 में यहां पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे, लेकिन 2007 तक यह सीट अस्तित्व में नहीं रही। 2008 में परिसीमन के बाद निर्मली विधानसभा का पुनर्गठन हुआ और 2010 में यहां दोबारा चुनाव का आगाज़ हुआ।
चुनावी इतिहास
निर्मली के पहले विधायक कांग्रेस के कामता प्रसाद गुप्ता बने, जिन्होंने समाजवादी पार्टी (एसपी) के विनायक प्रसाद यादव को हराया था। इसके बाद परिसीमन से पहले तक यह सीट निष्क्रिय रही। 2010 में जब इस क्षेत्र में चुनावी प्रक्रिया फिर से शुरू हुई तो जेडीयू उम्मीदवार अनिरुद्ध प्रसाद यादव ने कांग्रेस के विजय कुमार गुप्ता को हराकर सत्ता का स्वाद चखा। उस चुनाव में अनिरुद्ध प्रसाद को 70,150 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को मात्र 24,140 मत हासिल हुए।
Laukaha Vidhansabha Seat का चुनावी इतिहास.. 70 साल की सियासत, बदलते समीकरण और 2025 की चुनौती
2015 का चुनाव निर्मली विधानसभा के लिए बेहद अहम रहा। उस समय जेडीयू महागठबंधन का हिस्सा थी और सीधे तौर पर मुकाबला एनडीए के साथ था। बीजेपी प्रत्याशी राम कुमार राय को कड़ी टक्कर देते हुए जेडीयू के अनिरुद्ध प्रसाद यादव ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। जेडीयू को इस बार 79,600 वोट मिले, जबकि बीजेपी उम्मीदवार को 55,649 वोटों से संतोष करना पड़ा।
2020 के विधानसभा चुनाव ने अनिरुद्ध प्रसाद यादव की स्थिति को और मजबूत कर दिया। उन्होंने आरजेडी प्रत्याशी यदुवंश कुमार यादव को 43,922 वोटों के बड़े अंतर से हराया। जेडीयू उम्मीदवार को 92,250 वोट हासिल हुए, जबकि आरजेडी को सिर्फ 48,055 वोट मिले। वहीं, आरएलएसपी के अर्जुन प्रसाद तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें 12,661 वोट मिले।
जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की दृष्टि से देखें तो निर्मली विधानसभा में यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक माने जाते हैं। दोनों समुदाय मिलकर लगभग 30 प्रतिशत वोट शेयर रखते हैं। इसके अलावा ब्राह्मण समाज का भी यहां महत्वपूर्ण असर है। कुल मिलाकर यह सीट सामाजिक समीकरण और विकास के मुद्दों पर ही तय होती है। यहां 2,46,003 मतदाता दर्ज हैं, जिनमें 1,27,640 पुरुष और 1,18,361 महिला वोटर शामिल हैं।
निर्मली विधानसभा की राजनीति इस बात का साफ संकेत देती है कि यहां यादव-मुस्लिम समीकरण और जेडीयू की संगठनात्मक पकड़ निर्णायक भूमिका निभाती रही है। ऐसे में आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जेडीयू इस किले को संभाल पाती है या विपक्ष कोई नया समीकरण गढ़ने में सफल होता है।






















