Nishant Kumar JDU: बिहार की राजनीति में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा जिस नाम की हो रही है, वह है निशांत कुमार। एक ऐसा चेहरा, जिसे नीतीश कुमार ने हमेशा राजनीति से दूर रखा, लेकिन अब JDU खुद आगे बढ़कर उन्हें राज्य की सियासत के नए केन्द्र में ला रही है। राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा का उनके साथ खड़ा होकर दिया गया बयान इस बात का संकेत बन गया कि पार्टी ने उच्च स्तर पर बड़ा फैसला ले लिया है। राजनीतिक गलियारों में तो यहां तक कहा जा रहा है कि 15 जनवरी के बाद बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो सकता है, जिसमें निशांत की औपचारिक एंट्री सबसे बड़ा मोड़ साबित होगी।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर निशांत कुमार को JDU की विरासत संभालने के लिए सबसे मुफीद चेहरा क्यों माना जा रहा है? यह भी कि क्या चीज उन्हें नीतीश कुमार की राजनीतिक धारा का स्वाभाविक उत्तराधिकारी बनाती है?
निशांत की पहचान उनकी कम बोलने की आदत, संयमित स्वभाव और शांत स्तर की राजनीति के प्रति झुकाव में दिखाई देती है। पिछले कुछ महीनों में मीडिया और सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनकी मौजूदगी ने एक अलग प्रकार की छवि गढ़ी है- एक ऐसे युवा की, जो राजनीतिक चमक-दमक से दूर रहते हुए गंभीर और संतुलित दिखता है। ऐसी छवियों की बिहार में हमेशा मांग रही है। जिस प्रदेश में तेजस्वी यादव और चिराग पासवान जैसे युवा चेहरे पहले से मौजूद हैं, वहां निशांत का सादगीपूर्ण व्यक्तित्व उन्हें भीड़ से अलग करता है।
नीतीश कुमार की 20 साल की राजनीति ने बिहार में एक मजबूत प्रशासनिक ढांचा, विकास मॉडल और राजनीतिक स्थिरता का आधार तैयार किया है। यह नीतीश ब्रांड, विश्वसनीयता और मजबूती, निशांत के साथ स्वाभाविक रूप से जुड़ेगा। माना जा रहा है कि नीतीश की विरासत, उनका राजनीतिक अनुभव और उनकी साख निशांत के लिए वह पूंजी है, जिसे कोई भी युवा नेता आसानी से हासिल नहीं कर सकता। यह नींव निशांत को आगे बढ़ने में वैसा ही आधार देगी, जैसा मुलायम सिंह ने अखिलेश को और रामविलास पासवान ने चिराग को दिया।
क्षेत्रीय दलों में नेतृत्व का सुरक्षित हस्तांतरण बहुत महत्वपूर्ण होता है। पार्टी तभी टिकती है जब उसकी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए एक स्पष्ट, मजबूत और स्वीकृत नेतृत्व मौजूद हो। JDU के भीतर निशांत को लेकर जो सर्वसम्मति बनती दिख रही है, वह इस बात को साबित करती है कि पार्टी उनकी अगुवाई में एकजुट और स्थिर रह सकती है। गठबंधन की राजनीति में भी निशांत वह चेहरा साबित हो सकते हैं, जिसके इर्द-गिर्द सहयोगी दलों को समन्वय आसान लगता रहे।
बिहार की मौजूदा राजनीति को देखें तो पिछले 15 साल में सक्रिय रहे नेता एक ही पीढ़ी के हैं। ऐसे में जब एक बिल्कुल नया चेहरा सामने आता है, तो राजनीति में उसके लिए जगह खुद–ब–खुद तैयार होती जाती है। यही वजह है कि निशांत के आने से JDU न सिर्फ अपना नया नेतृत्व तैयार करेगी बल्कि प्रदेश के युवा वोटरों तक भी एक नए तरीके से पहुंच बनाएगी।
साफ दिख रहा है कि निशांत के लिए राजनीतिक पिच तैयार है। अब सिर्फ यह देखना बाकी है कि वे कब मैदान में उतरते हैं और किस पोजिशन पर अपनी पहली पारी खेलना शुरू करते हैं। बिहार की राजनीति एक और बड़े मोड़ की ओर बढ़ रही है, और यह मोड़ JDU के भविष्य के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।






















