नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी अपने बेबाक और स्पष्टवादी अंदाज के लिए जाने जाते हैं। एक बार फिर उन्होंने अपने विचारों से राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। शनिवार को एक कार्यक्रम में उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वह राजनीति में जाति और धर्म को नहीं लाते, क्योंकि वह मानते हैं कि समाज की सेवा ही सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए।
गडकरी ने अपनी चुनावी यात्राओं का जिक्र करते हुए कहा, “जो करेगा जात की बात, उसको मारूंगा लात।” उनका यह बयान राजनीतिक मंचों पर जातिगत समीकरणों को हवा देने वालों के लिए एक कड़ा संदेश माना जा रहा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राजनीति में सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे, चाहे चुनाव हार जाएं या मंत्री पद चला जाए।
जाति-धर्म से ऊपर समाज सेवा
गडकरी ने यह बयान ननमुदा संस्थान के दीक्षांत समारोह में दिया, जहां उन्होंने जोर देकर कहा कि राजनीति में जाति और धर्म का भेदभाव खत्म होना चाहिए। उन्होंने कहा, “मैंने तय किया है कि मैं अपने मूल्यों के साथ राजनीति करूंगा। यह नहीं सोचूंगा कि मुझे कौन वोट देगा।” उन्होंने बताया कि उनके कुछ दोस्तों ने उन्हें सलाह दी कि ऐसे बयान देने से राजनीतिक नुकसान हो सकता है, लेकिन उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया।
शिक्षा ही असली विकास का जरिया
गडकरी ने अपने कार्यकाल की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि साझा करते हुए बताया कि जब वह महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य (MLC) थे, तब उन्होंने नागपुर स्थित अंजुमन-ए-इस्लाम संस्थान के इंजीनियरिंग कॉलेज को अनुमति दिलवाई। उन्होंने कहा कि यह जरूरी था, क्योंकि शिक्षा ही असली बदलाव का जरिया है।
“अगर मुस्लिम समुदाय से ज्यादा इंजीनियर, आईएएस और आईपीएस अधिकारी निकलेंगे, तो पूरे देश का विकास होगा। हमारे पास डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का उदाहरण है, जो शिक्षा की ताकत से राष्ट्रपति बने।”
गडकरी ने इस बात पर जोर दिया कि आज हजारों छात्र अंजुमन-ए-इस्लाम के तहत पढ़ाई कर रहे हैं और इंजीनियर बन चुके हैं। उन्होंने कहा, “अगर उन्हें यह मौका नहीं मिलता, तो उनका भविष्य अंधकार में रह जाता। शिक्षा में इतनी ताकत होती है कि यह न सिर्फ व्यक्ति बल्कि पूरे समाज को बदल सकती है।”