Bihar Politics: बिहार की राजनीति एक बार फिर हलचल के दौर में है। सत्ता की बिसात पर सबसे बड़ा सवाल यही घूम रहा है कि अगर नीतीश कुमार की सक्रिय राजनीति ढीली पड़ती है, तो जेडीयू का भविष्य कैसी शक्ल लेगा। यह सवाल अचानक नहीं उठे हैं, बल्कि नीतीश की उम्र, सेहत और हालिया राजनीतिक सक्रियता में आई सुस्ती ने इन चर्चाओं को और तेज कर दिया है। बिहार की सियासत लगभग दो दशकों से जिस नाम के इर्द-गिर्द घूमती रही है, वह है नीतीश कुमार. प्रशासनिक मॉडल से लेकर गठबंधन की राजनीति तक, जेडीयू की पहचान एक व्यक्ति विशेष की छवि पर टिकी रही है। यही वजह है कि पार्टी का सबसे बड़ा संकट अब “पोस्ट-नीतीश एरा” को लेकर खड़ा हो गया है।
जेडीयू के भीतर भी नेतृत्व परिवर्तन की आहट महसूस की जा सकती है, वहीं पार्टी के बाहर दो चेहरे- चिराग पासवान और प्रशांत किशोर- नीतीश के कमज़ोर पड़ते प्रभाव के साथ जेडीयू के वोट बैंक की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं। बिहार का मैदान आने वाले वक्त में इन्हीं तिकड़मों का खेल बनता नजर आ रहा है।
नीतीश के बिना जेडीयू की पहचान खतरे में क्यों?
जेडीयू की असल ताकत एक मज़बूत जातीय गठजोड़ के बजाय नीतीश की विश्वसनीय छवि रही है। 12–15 प्रतिशत का स्थिर कोर वोट बैंक इसी भरोसे पर खड़ा रहा है। लेकिन सवाल अब यह है कि जब नेतृत्व की बागडोर किसी नए हाथ में जाएगी, तो क्या यह वोट बैंक पार्टी के साथ रहेगा या बिखर जाएगा?
जेडीयू की चुनौती सिर्फ आंतरिक खींचतान नहीं है। खतरा बाहर से कहीं बड़ा है। दो नेता- एक एनडीए का चमकता चेहरा और दूसरा वैकल्पिक राजनीति की तलाश में जुटा रणनीतिकार- इस वोट बैंक को अपने पाले में खींचने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
चिराग पासवान: युवा + दलित + अति पिछड़ा समीकरण के साथ आगे बढ़ते हुए
चिराग पासवान 2020 से ही जेडीयू के परंपरागत वोटरों में पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी रणनीति में तीन स्पष्ट लाइनें हैं- मज़बूत मोदी समर्थन, युवा चेहरा और दलित–अति पिछड़ा गठजोड़। 2020 के चुनाव में चिराग ने नीतीश को सीधे निशाने पर लेकर जेडीयू को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया था। आज जब नीतीश धीरे-धीरे सक्रियता से पीछे हटते दिखते हैं, तो चिराग उसी खाली स्पेस में फिर से प्रवेश करने की कोशिश में हैं। युवा और अति पिछड़ा वर्ग को यह संदेश देना कि “नया चेहरा चाहिए तो मैं हूं”, चिराग को जेडीयू के वोट बैंक की सबसे बड़ी उम्मीद बना रहा है।
प्रशांत किशोर: जेडीयू को भीतर से जानने का फायदा उठाने की तैयारी
चिराग जहां एनडीए के उभरते चेहरे के रूप में आगे बढ़ रहे हैं, वहीं प्रशांत किशोर पूरी तरह अलग रास्ते पर चल रहे हैं। जेडीयू के पूर्व सदस्य होने के नाते वह पार्टी के अंदरूनी तंत्र और गुटबाजी को बारीकी से समझते हैं। उनकी रणनीति दो मोर्चों पर चल रही है- एक तरफ कांग्रेस के पारंपरिक MY+SC वोट को आकर्षित करना, दूसरी तरफ जेडीयू के उन परंपरागत वोटरों को जोड़ना जो बदलाव की तलाश में हैं। पीके अपनी जनसभाओं और पदयात्राओं के जरिए एक वैकल्पिक नेतृत्व मॉडल पेश कर रहे हैं, जो धीरे-धीरे उनका अलग राजनीतिक किला खड़ा कर सकता है।
चार तरफ खिंचता हुआ जेडीयू का वोट बैंक
अगर नेतृत्व का बदलाव जल्द होता है या नीतीश राजनीति से हटते हैं, तो जेडीयू का वोट बैंक चार दिशाओं में खिंच सकता है। युवा–दलित–अति पिछड़ा वोट चिराग की तरफ जाएगा। ग्रामीण–असंतुष्ट वोटर पीके के साथ जा सकते हैं। बीजेपी भी नीतीश मॉडल के “उत्तराधिकारी” रूप में अपने हिस्से की हिस्सेदारी ले सकती है। आरजेडी भी अति पिछड़ा वर्ग में पैठ बनाने की कोशिश करेगी। इसलिए जेडीयू का कमजोर पड़ना बिहार की राजनीति में एक बड़े “रीअलाइनमेंट” को जन्म दे सकता है।
उत्तराधिकारी कौन? क्या जनता किसी और को स्वीकार करेगी?
जेडीयू के भीतर उत्तराधिकारी को लेकर कई दावेदार हैं, पर सबसे बड़ी चुनौती सहमति की है। नीतीश की स्वीकार्यता उनकी व्यक्तिगत छवि से आती रही है, न कि पार्टी के सामूहिक चेहरे से। इसलिए यह साफ नहीं है कि जनता किसी नए चेहरे को उसी भरोसे के साथ स्वीकार करेगी या नहीं। अगर सहमति टूटती है तो जेडीयू के भीतर ही खींचतान तेज हो सकती है, और इसी खाली स्पेस में चिराग व पीके और तेजी से सेंध लगा सकते हैं।
बिहार की राजनीति का नया संघर्ष: चिराग बनाम पीके
बिहार की सियासत हमेशा द्विपक्षीय संघर्ष पर टिकी रही है- एनडीए बनाम महागठबंधन। लेकिन अब एक नया संघर्ष आकार ले रहा है- जेडीयू के वोट बैंक को साधने की लड़ाई। एक तरफ हैं चिराग, जो एनडीए के युवा चेहरे के रूप में तेजी से उभर रहे हैं। दूसरी तरफ हैं प्रशांत किशोर, जो वैकल्पिक राजनीति की नई राह बनाना चाहते हैं। बीच में है 12–15% का वही वोट बैंक, जो बिहार की सत्ता की चाबी है।
नीतीश का युग खत्म होगा या आखिरी दांव फिर चौंका देगा?
सियासत में नीतीश कुमार को कम आंकने की गलती कई बार लोगों ने की है। यह भी संभव है कि वह एक बार फिर ऐसा राजनीतिक दांव खेलें जो सभी समीकरणों को उलट दे। लेकिन अगर ऐसा न हुआ तो बिहार की राजनीति अब दो नए दावेदारों- चिराग और पीके- के इर्द-गिर्द घूमेगी, और जेडीयू का वोट बैंक ही आने वाले वर्षों की सबसे बड़ी राजनीतिक लड़ाई का केंद्र बन जाएगा।






















