दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की हालिया मुलाकात के बाद बिहार की राजनीति में अचानक हलचल तेज हो गई है। इस बैठक को लेकर जहां सत्तारूढ़ खेमे में इसे शिष्टाचार और विकास से जुड़े विमर्श के तौर पर देखा जा रहा है, वहीं विपक्ष इसे सत्ता परिवर्तन की संभावनाओं से जोड़कर पेश कर रहा है। राजधानी दिल्ली में 22 दिसंबर को हुई इस मुलाकात के तुरंत बाद राष्ट्रीय जनता दल ने ऐसा दावा किया है, जिसने बिहार की राजनीति में नए सियासी कोण खोल दिए हैं।
राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने बयान देकर यह कहकर सनसनी फैला दी कि भाजपा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कुर्सी से हटाने की रणनीति तैयार कर ली है। उनके अनुसार दिल्ली की बैठक में इसी विषय पर गंभीर चर्चा हुई और भाजपा का दबाव है कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद छोड़ें। तिवारी ने दावा किया कि खरमास समाप्त होने और मकर संक्रांति के बाद, यानी दही-चूड़ा के आयोजन के बाद, बिहार की राजनीति में ‘खेला’ देखने को मिलेगा। उनका आरोप है कि भाजपा राज्य में सभी क्षेत्रीय दलों को कमजोर कर अपना मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश में जुटी है।
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इस दावे के जवाब में जदयू ने भी पलटवार करते हुए सारा फोकस राजद की आंतरिक स्थिति पर डाल दिया है। जदयू के प्रदेश मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है कि असल बेचैनी राजद के विधायकों में है। उनके मुताबिक राजद के कई विधायक पार्टी नेतृत्व से नाराज हैं और आने वाले समय में पार्टी छोड़ सकते हैं। उन्होंने यहां तक दावा किया कि कई राजद विधायक जदयू के संपर्क में हैं और उन्हें अपनी पार्टी में राजनीतिक भविष्य नजर नहीं आ रहा है।
दिल्ली में हुई इस अहम बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और जदयू नेता व केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह भी मौजूद थे। यह मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब विधानसभा चुनाव में एनडीए की जीत के बाद नीतीश कुमार ने एक बार फिर राज्य की बागडोर संभाली है और सरकार बने हुए करीब एक महीना ही बीता है। स्वाभाविक तौर पर इस बैठक को केंद्र–राज्य समन्वय, विकास परियोजनाओं और राजनीतिक रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।






















