चेन्नई: परिसीमन के मुद्दे को लेकर विपक्ष अपनी रणनीति बनाने में लगा हुआ है। इसे लेकर दक्षिण की राजनीति भी उतावली दिखाई दे रही है। बता दें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन परिसीमन के मुद्दे को लेकर काफी गंभीर दिखाई दे रहे हैं ।उनका कहना है कि अगर जनसंख्या के आधार पर परिसीमन किया गया तो लोकसभा और विधानसभा दोनों के लिए ही दक्षिण को भारी नुकसान होने वाला है। इस के अलावा वे बीजेपी सरकार को दक्षिण विरोधी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
कभी हिन्दी और संस्कूत भाषा का विरोध तो कभी हिन्दी भाषियों का विरोध कुल मिलाकर भाषा और क्षेत्र की राजनीति को भरसक गरमाने की कोशिश में लगे है स्टालिन। इसी मुद्दे को लेकर शिवार को उन्होंने चेन्नई में विपक्षी दलों की एक बड़ी बैठक बुलाई थी। ओडिशा और पंजाब के अलावा दक्षिणी राज्यों के कांग्रेस नेताओं ने भी इस बैठक में हिस्सा लिया। हालांकि हिंदी बेल्ट और महाराष्ट्र के दलों ने पहली ही बैठक में किनारा कर लिया। वहीं टीएमसी भी इस बैठक में शामिल नहीं हुई।
ऐसे में इस बैठक से यह भी पता चल गया है कि परिसीमन के मुद्दे को लेकर पूरा विपक्ष एकजुट नहीं है। दक्षिण के राज्यों का कहना है कि अगर जनसंख्या के आधार पर परिसीमन हुआ तो उनकी सीटें कम हो जाएंगी। 2026 की जनगणना के बाद लोकसभा सीटों का परिसीमन होना है। डीएमके ने इस बैठक में उत्तर की विपक्षी पार्टियों को आमंत्रित ही नहीं किया था। इसें सपा और आरजेडी के अलावा भी कई दल शामिल थे। इसके अलावा महाराष्ट्र से शिवसेना और एनसीपी को भी शामिल नहीं किया गया।
टीएमसी को मीटिंग में बुलाया गया था लेकिन टीएमसी ने बैठक में हिस्सा नहीं लिया। 1977 में लोकसभा चुनाव की बात करें तो औसतन 10.11 लाख लोगों पर एक सांसद था। अब अगर डीलिमिटेशन होता है तो उत्तर के राज्यों और पश्चिम बंगालल में सीटें बढ़ेंगी। पश्चिम बंगाल में लोकसभा सीटें 42 से बढ़कर 66 हो सकती हैं। ऐसा तब होगा जब 15 लाख की जनसंख्या को आधार माना जाएगा। वहीं अगर 20 लाख की जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होता है तो भी पश्चिम बंगाल में 50 सीटें हो जाएंगी। ऐसे में इस मामले को लेकर टीएमसी ने अपना रुख अभी स्पष्ट ही नहीं किया है। वहीं रिपोर्ट्स की मानें तो समाजवादी पार्टी भी इस मामले पर अभी कोई चर्चा नहीं करना चाहती।
समाजवादी पार्टी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश की पार्टी है और जनसंख्या के आधार पर निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश में लोकसभा सीटें बढ़ेंगी। परिसीमन के बाद तमिलनाडु में भी सीटें बढ़ेंगी हालांकि इनकी संख्या दोगुनी नहीं हो पाएगी। केरल में 20 से सीटें बढ़कर 36 हो सकती है। अगर 20 लाख की जनसंख्या को आधार मानकर परिसीमन होता है तो लोकसभा की सीटें 543 से बढ़कर 707 हो जाएंगी। ऐसे में दक्षिण के राज्यों को सीटों का नुकसान होना तय है। इस फार्मुले से तमिलनाडु की सीटें केवल 39 ही हो पाएंगी। वहीं केरल को दो सीटों का नुकसान होगा। यूपी, बिहार और झारखंड को इसका फायदा मिलेगा। अगर 15 लाख की जनसंख्या के हिसाब से परिसीमन होता है तो कुल सीटें 942 हो जाएंगी। उत्तर के राज्यों की तुलना में दक्षिण के राज्यों को कम सीटें मिलेंगे।