नई दिल्ली : भारत में चाय के साथ हर घर में पसंद की जाने वाली पारले-जी बिस्कुट, जो मूल रूप से मात्र ₹5 में उपलब्ध होती है, अब युद्धग्रस्त गाजा पट्टी में एक विलासिता की वस्तु बन गई है। एक चौंकाने वाली रिपोर्ट के अनुसार, गाजा में यह बिस्कुट अब ₹2300 में बिक रहा है, जो इसकी मूल कीमत से लगभग 500 गुना अधिक है। यह खुलासा एक वायरल सोशल मीडिया पोस्ट से हुआ, जिसमें एक स्थानीय निवासी मोहम्मद जवाद ने इस मूल्य वृद्धि को साझा किया।
युद्ध और अकाल का असर
गाजा में जारी संघर्ष और मानवीय संकट के कारण वहां भोजन की भारी कमी हो गई है। संयुक्त राष्ट्र की विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च से लागू नाकेबंदी के बाद खाद्य पदार्थों की कीमतें 1400% तक बढ़ गई हैं। नतीजतन, बच्चों में तीव्र कुपोषण की दर में भी तीन गुना वृद्धि हुई है। पारले-जी जैसे सस्ते बिस्कुट, जो भारत में एक साधारण नाश्ते के रूप में जाना जाता है, गाजा में जीवनरक्षक वस्तु बन गया है।
लूट और गैरकानूनी व्यापार का आरोप
इस मूल्य वृद्धि के पीछे मानवीय सहायता की लूट और कालाबाजारी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। इजरायली दूतावास के प्रवक्ता गाइ निर ने दावा किया कि पिछले सहायता प्रयासों में 80% से अधिक आपूर्ति हमास द्वारा लूटी गई और बाजार में ऊंची कीमतों पर बेची गई। हालांकि, इस दावे की स्वतंत्र पुष्टि करना मुश्किल है, क्योंकि संघर्ष क्षेत्र में शोध और डेटा संग्रह सीमित है।
दूसरी ओर, गाजा के निवासी आरोप लगाते हैं कि नाकेबंदी और सहायता वितरण में अनियमितता ने इस संकट को और गहरा किया है।
1950 के दशक में पारले प्रोडक्ट्स द्वारा लॉन्च की गई पारले-जी, भारत में बच्चों और परिवारों के लिए एक किफायती और सुलभ उत्पाद के रूप में जानी जाती थी। लेकिन गाजा में इसका नया रूप—एक दुर्लभ और महंगा सामान—युद्ध और अकाल की भयावहता को दर्शाता है। स्थानीय निवासी इस बिस्कुट को हासिल करने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, जो उनके लिए अब केवल भोजन नहीं, बल्कि जीवित रहने की उम्मीद बन गया है।
विशेषज्ञों की राय
मानवाधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि गाजा में खाद्य संकट अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए एक बड़ी चुनौती है। सहायता को निष्पक्ष रूप से वितरित करने और कालाबाजारी रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है।