Paroo Vidhan Sabha 2025: मुजफ्फरपुर जिले की पारू विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 97) बिहार की राजनीति में हमेशा से अहम मानी जाती रही है। यह सीट वैशाली लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और जातीय समीकरण से लेकर उम्मीदवारों की व्यक्तिगत पकड़ तक, हर पहलू चुनावी परिणाम को प्रभावित करता है। बीते डेढ़ दशक से यह सीट भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कब्जे में है, जहां अशोक कुमार सिंह लगातार अपनी जीत का परचम लहराते आए हैं।
चुनावी इतिहास
अक्टूबर 2005 से अब तक अशोक कुमार सिंह ने यहां अपनी मजबूत राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कराई है। चाहे 2015 का चुनाव हो, जिसमें उन्होंने आरजेडी के शंकर प्रसाद को 13,539 वोटों से हराया, या 2020 का चुनाव जब उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार शंकर प्रसाद को 14,698 वोटों से मात दी—दोनों ही बार उनका दबदबा साफ दिखाई दिया। 2020 में उन्हें 77,392 वोट मिले, जबकि शंकर प्रसाद को 62,694 वोट हासिल हुए। कांग्रेस उम्मीदवार अनुनय सिंह सिर्फ 13,961 वोटों पर सिमट गए।
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हालांकि पारू सीट का राजनीतिक इतिहास केवल भाजपा की जीतों तक सीमित नहीं है। 1990 के दशक और 2000 की शुरुआत में इस सीट पर मिथिलेश प्रसाद यादव का वर्चस्व रहा। उन्होंने 1995 में जनता दल और 2000 व फरवरी 2005 में आरजेडी के टिकट पर जीत हासिल की। हालांकि अक्टूबर 2005 से भाजपा ने इस सीट पर लगातार बढ़त बनाई और आज तक कायम रखी है।
जातीय समीकरण
पारू विधानसभा का जातीय समीकरण भी चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभाता है। यहां यादव और मुस्लिम मतदाता सबसे अहम माने जाते हैं। इनके अलावा राजपूत, भूमिहार, कोइरी और रविदास वोटरों की संख्या भी चुनावी समीकरण बदलने की क्षमता रखती है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल 4,56,333 की आबादी पूरी तरह ग्रामीण है। अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी 16.61% और अनुसूचित जनजाति की मात्र 0.34% है। वहीं, 2019 की मतदाता सूची के अनुसार इस क्षेत्र में 2,97,518 पंजीकृत मतदाता और 311 मतदान केंद्र मौजूद हैं।
इस बार का चुनावी संग्राम दिलचस्प होगा क्योंकि भाजपा की ओर से अशोक कुमार सिंह फिर से मैदान में उतर सकते हैं। लेकिन विपक्ष किस उम्मीदवार पर दांव लगाता है, यह समीकरण तय करेगा। यादव-मुस्लिम और दलित-कोइरी समीकरण अगर एकजुट हुआ तो भाजपा को चुनौती मिल सकती है, वरना पिछली बार की तरह अशोक सिंह की राह आसान हो सकती है।






















