बिहार विधान परिषद में बजट सत्र में बहुत कुछ हुआ। लेकिन जो हुआ, वह केवल एक बहस नहीं थी, बल्कि राजनीति के उबाल का ऐसा नजारा था, जिसने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया। पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच हुई तीखी बहसों ने राजनीति के नए समीकरणों को जन्म दे दिया है।
12 मार्च: सदन में तूफान और बाहर कटाक्षों की बरसात
12 मार्च का दिन बिहार विधान परिषद में हंगामे का गवाह बना। सदन के भीतर जब राबड़ी देवी और नीतीश कुमार आमने-सामने आए, तो तकरार इतनी बढ़ गई कि शब्दों के तीर तेज़ हो गए। बहस के बाद जब राबड़ी देवी सदन से बाहर निकलीं, तो उनके शब्दों ने राजनीतिक गलियारों में आग लगा दी। उन्होंने सीएम नीतीश कुमार को सीधे-सीधे “भंगेड़ी” करार दे दिया और कहा कि “वो भांग खाकर आते हैं और महिलाओं का अपमान करते हैं!”
राबड़ी देवी के इस बयान के बाद तेजस्वी यादव भी हमलावर हो गए। उन्होंने आरोप लगाया कि “नीतीश कुमार सदन में बैठकर तरह-तरह के इशारे करते हैं। जब राबड़ी देवी बिंदी लगाती हैं, तो मुख्यमंत्री इशारा करते हैं।” यह बयान सत्ता और विपक्ष के बीच तनाव को और गहरा कर गया।
25 मार्च: सदन में नीतीश का पलटवार
12 मार्च के बाद 25 मार्च को एक बार फिर सदन में हंगामा बरपा। इस बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पलटवार किया और राबड़ी देवी को निशाने पर लेते हुए कहा कि “अरे बैठो न, तोरा कौची है? अरे तोरा हसबैंड का है?”
मुख्यमंत्री के इस बयान ने नया विवाद खड़ा कर दिया। राजद के MLC सदन में सरकार पर आरक्षण चोर होने का आरोप लगा रहे थे, लेकिन बहस का रुख व्यक्तिगत हमलों की ओर मुड़ गया।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद सवाल यह उठता है कि क्या यह महज भाभी-देवर के बीच की जुबानी जंग थी या फिर बिहार की राजनीति में बदलते समीकरणों की ओर इशारा कर रही थी? राबड़ी देवी और तेजस्वी के आरोपों ने यह स्पष्ट कर दिया कि महागठबंधन और जदयू के बीच दरारें और चौड़ी हो रही हैं।