बिहार की राजनीति में फिर से भूचाल आ गया है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने खुद को महागठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया है और इसी के साथ 2025 के चुनावी घमासान की शुरुआत भी हो गई है। तेजस्वी का यह ऐलान सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि सत्ताधारी NDA के लिए खुली चुनौती है। बिहार सरकार के मंत्री श्रवण कुमार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बिहार की जनता ने पहले भी अहंकार को चकनाचूर किया है और 2025 में फिर करेगी।
जहां एक तरफ कांग्रेस यह कह रही है कि महागठबंधन में मुख्यमंत्री उम्मीदवार चुनाव के बाद तय किया जाएगा, वहीं तेजस्वी यादव ने अपने दावे को पुख्ता कर दिया है। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या महागठबंधन के भीतर दरारें गहरी हो रही हैं? या फिर यह रणनीति के तहत तेजस्वी की राजनीतिक चाल है?
NDA के नेताओं ने इसे “राजनीतिक अहंकार” करार देते हुए हमला बोला है। श्रवण कुमार ने कहा कि बिहार की जनता जनादेश देती है, न कि कोई खुद को मुख्यमंत्री घोषित कर सकता है। उनका कहना था कि जब विधायक दल बैठता है, तब मुख्यमंत्री का फैसला होता है। उन्होंने आगे कहा कि हमने 20 सालों में बिहार की जनता के लिए जो काम किए हैं, वह किसी से छिपा नहीं है। बिहार की जनता सिर्फ घोषणाओं से नहीं, काम से वोट देती है।
तेजस्वी यादव ने खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के साथ कई बड़े वादे किए हैं। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार बनी तो गरीबों को जमीन दी जाएगी, रोजगार के नए अवसर पैदा किए जाएंगे और बिहार में आर्थिक विकास की नई गाथा लिखी जाएगी। लेकिन, सत्ता पक्ष इस पर पलटवार करते हुए कह रहा है कि “जो खुद जमीन खरीदने के मामले में घिरे हों, वे गरीबों को जमीन देने की बात कैसे कर सकते हैं?”
श्रवण कुमार ने दावा किया कि बिहार में पहली बार गरीबों को सरकार की ओर से तीन से पांच डिसमिल जमीन दी जा रही है। उन्होंने कहा कि अगर सरकारी जमीन उपलब्ध नहीं होती, तो सरकार 1 लाख रुपये देकर गरीबों को जमीन खरीदने में मदद कर रही है। यह कोई चुनावी वादा नहीं, बल्कि बिहार सरकार का जमीनी काम है।