बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक हलचल तेज हो रही है। हर हाल में सत्ता पाने को आतुर तेजस्वी यादव और राजद को उसके सहयोगी कांग्रेस ने तो सीटों की मांग वाले बयान से परेशान किया ही है। साथ ही पार्टियों की भूमिका भी तेजस्वी यादव के लिए अच्छी खबर लाती नहीं दिख रही। दरअसल, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के लिए 2025 का बिहार चुनाव आसान नहीं होने वाला। 2020 के चुनाव में महागठबंधन ने चंद सीटों के अंतर से बहुमत गंवा दिया था, लेकिन यह भी सच है कि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने जदयू और वीआईपी जैसी एनडीए सहयोगी पार्टियों को भारी नुकसान पहुंचाया।
लोजपा ने अकेले चुनाव लड़ते हुए 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, हालांकि सिर्फ मटिहानी सीट पर जीत हासिल की। बावजूद इसके, उसने 6% वोट (करीब 25 लाख) जुटाए और 20 से अधिक सीटों पर एनडीए को हराने में भूमिका निभाई। अगर चिराग पासवान की पार्टी 2020 में एनडीए का हिस्सा होती, तो यह संभव था कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन की सीटें 100 से भी कम रह जातीं।
लेकिन 2020 और 2025 के बीच गंगा में पानी बहुत बहा और राजनीति में हालात वैसे ही बदले हैं। चिराग पासवान पूरी तरह एनडीए के पास आ गए हैं। इस बार चिराग पासवान ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वे एनडीए के साथ चुनाव लड़ेंगे। यह फैसला महागठबंधन के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। चिराग की पार्टी भले ही पिछले चुनाव में सिर्फ एक सीट जीत पाई हो, लेकिन उसने जदयू और वीआईपी के वोट काटकर कई सीटों पर राजद और अन्य विपक्षी दलों की जीत सुनिश्चित की।
2020 के चुनावी आंकड़ों से पता चलता है कि लोजपा ने कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाई:
- मटिहानी: लोजपा ने जदयू के बाहुबली बोगो सिंह को हराकर यह सीट जीती।
- एकमा: जदयू की सीता देवी 14,000 वोट से हारीं, जबकि लोजपा को 30,000 वोट मिले।
- दिनारा: लोजपा उम्मीदवार राजेंद्र सिंह दूसरे स्थान पर रहे, जिससे जदयू तीसरे स्थान पर पहुंच गया और राजद ने यह सीट जीती।
- रघुनाथपुर, अलौली, और राजापाकड़: इन सीटों पर लोजपा के वोटों की वजह से जदयू और वीआईपी के उम्मीदवार हार गए।
- चिराग पासवान की पार्टी ने कुल मिलाकर जदयू और वीआईपी को दो दर्जन सीटों पर अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान पहुंचाया।
अगर चिराग पासवान इस बार एनडीए के साथ चुनाव लड़ते हैं, तो 2020 में उनके कारण जदयू और वीआईपी को हुए नुकसान की भरपाई हो सकती है। इससे महागठबंधन के लिए सीटों की संख्या कम हो सकती हैं। तेजस्वी यादव को 2025 में दोहरी चुनौती का सामना करना होगा। एक तरफ एनडीए के मजबूत होते समीकरण से निपटना होगा, वहीं दूसरी ओर महागठबंधन को एकजुट और अपने एजेंडे पर केंद्रित रखना होगा।