उम्र कैद की सजा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन अब जेल से बाहर आ रहे हैं। उन्हें रिहाई नहीं मिली है। 15 दिनों के पैरोल पर आनंद मोहन बाहर आ रहे हैं। वैसे उन्हें रिहा करने की मांग पुरानी है। लेकिन गोपालगंज के तत्कालीन DM जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन को कानूनी राहत नहीं मिली। पैरोल पर आना एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन जिस वक्त आनंद मोहन को पैरोल मिला है, उसकी टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे हैं। अभी गोपालगंज में उपचुनाव की प्रक्रिया चल रही है। वोटिंग तीन नवंबर को ही है। ऐसे में आनंद मोहन को पैरोल मिलने पर राजनीतिक चर्चाओं का बाजार गर्म है।
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पुराना है आनंद मोहन का गोपालगंज कनेक्शन
वैसे तो गोपालगंज आनंद मोहन का पैतृक जिला नहीं है। लेकिन उनके जीवन में गोपालगंज जिले का महत्व कहीं अधिक है। वहीं के तत्कालीन डीएम की हत्या के आरोप ने न सिर्फ आनंद मोहन की राजनीतिक जीवन समाप्त कर दिया। बल्कि उन्हें उम्र कैद की सजा भी मिल गई। राजपूत जाति वर्ग में आनंद मोहन की पूछ हमेशा से रही है। यह भावना इतनी गहरी है कि राजपूत किसी भी दल में रहें, आनंद मोहन के प्रति उनके मन में सॉफ्ट कॉर्नर रहा है। आनंद मोहन को जबरन फंसाने के आरोप लगते रहे हैं। गोपालगंज में राजपूत मतदाताओं की संख्या कहीं अधिक है। ऐसे वक्त में उनका जेल से बाहर आना अलग ही चर्चाएं शुरू कर रहा है। चूंकि आनंद मोहन के बेटे चेतन अभी राजद से विधायक हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि आनंद मोहन का बाहर आना राजपूत मतदाताओं के सेंटीमेंट को महागठबंधन के पक्ष में कर सकता है।
सुभाष सिंह थे आनंद मोहन के साथी
गोपालगंज में जिस पूर्व मंत्री सुभाष सिंह के निधन के बाद यह उपचुनाव हो रहा है, उनका आनंद मोहन से करीबी नाता रहा है। आनंद मोहन ने जब बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई थी। तब सुभाष सिंह उसी पार्टी से गोपालगंज में चुनाव लड़े थे। लेकिन सफलता नहीं मिली थी। सुभाष सिंह को पहली सफलता 2005 में भाजपा के टिकट पर मिली। लेकिन अब सुभाष सिंह के निधन के बाद उनकी पत्नी कुसुम देवी उपचुनाव में भाजपा की ओर से हैं। ऐसे में सवाल यह उठेगा कि आनंद मोहन पुराने रिश्तों का ख्याल करेंगे या नए रिश्ते (बेटे की पार्टी) को समर्थन देंगे।