एक तरफ बिहार में लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने में नीतीश कुमार और लालू यादव ने 15 दलों का महागठबंधन जुटा लिया। तो दूसरी ओर नीतीश और लालू की पार्टी के नेताओं ने एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इस बार शुरुआत शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक और शिक्षामंत्री चंद्रशेखर के बीच की तनातनी को लेकर हुई है। राजद के नेताओं ने शिक्षामंत्री का समर्थन किया है तो जदयू ने केके पाठक की ओर से तलवार निकाल ली है। लेकिन इस बीच बिहार सरकार के भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी और राजद एमएलसी सुनील कुमार सिंह ने केके पाठक और चंद्रशेखर के कंधों से बंदूक हटाकर एक दूसरे पर बयान फायर करने लगे हैं।
सजा राहुल गांधी को, टेंशन में मोदी, तो क्या नीतीश की बल्ले बल्ले?
भाजपा की भाषा का पेटेंट किसके पास?
दरअसल, एमएलसी सुनील कुमार सिंह ने जब केके पाठक की कार्यशैली के बारे में सवाल उठाए तो अशोक चौधरी बरस पड़े। Sunil Kumar Singh ने कहा था कि केके पाठक नहीं होते तो कॉपरेटिव बैंक सेक्शन 11 से बाहर नहीं होता और इनकी हालत दुरुस्त रहती। लेकिन अशोक चौधरी ने सुनील सिंह के बयानों को भाजपा की भाषा बता दी। सुनील सिंह ने कहा कि भाजपा की भाषा क्या होती है, यह मुझे नहीं पता। अशोक चौधरी भाजपा की भाषा सबसे बेहतर समझते होंगे क्योंकि कई घाट घूमकर कुछ दिन पहले तक अशोक चौधरी भाजपा की गोद में बैठकर लल्ला लल्ला लोरी दूध की कटोरी गा रहे थे। अब सौ चूहा खाकर हज करने निकले हैं। लेकिन इतना पक्का है कि वे 2025 में फिर नए घाट पर धूनी रमाएंगे।
“लालू के सबसे करीबी थे अशोक चौधरी”
वहीं अशोक चौधरी द्वारा जंगलराज के संबंध में बयान देने पर सुनील सिंह ने कहा है कि जिस वक्त की बात अशोक चौधरी कर रहे हैं उस समय वे लालू के करीबी थे। सबसे सक्रिय मंत्री थे। उस वक्त सहकारी नेता राजो सिंह की हत्या में सीधा इन्वॉल्वमेंट था, जिसे पूरा बिहार जानता है। लालू जी नहीं होते तो अशोक चौधरी का अता पता नहीं रहता। अशोक चौधरी कई घाट का पानी पिए हुए हैं, कई घाटों पर धूनी रमाए हुए हैं। महागठबंधन की सरकार में मंत्री होते हुए उनका बयान देना अनुचित और शर्म की बात है।