2019 के लोकसभा चुनाव में अगर उत्तर प्रदेश की सीटों ने भाजपा को बहुमत के करीब पहुंचाया था। बिहार की सीटों ने बहुमत के पार पहुंचाया था। भाजपा का गठबंधन पिछले चुनाव में सिर्फ एक सीट हारा। जबकि भाजपा के उम्मीदवारों वाली कोई सीट एनडीए नहीं गंवाई। कागजों पर तो यह रिकॉर्ड शानदार है लेकिन भाजपा के लिए बिहार में महागठबंधन के पास वो अस्त्र है, जिसकी काट भाजपा अपने पूरे राजनीतिक काल में ढूंढ़ नहीं पाई है। दसअसल, जिन 40 सीटों पर 2019 में चुनाव हुए थे, उनमें से 13 सीटें ऐसी हैं, भाजपा कभी चुनाव नहीं जीत सकी है। ये सीटें महागठबंधन के लिए बड़ा मौका हैं, जो निश्चित तौर पर तेजस्वी-नीतीश की जोड़ी के जेहन में भी होंगी।
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10 सीटों पर सहयोगियों के भरोसे रही भाजपा
बिहार की मौजूदा 40 लोकसभा सीटों में से 27 सीटों पर भाजपा ने कभी न कभी जीत दर्ज की है। लेकिन 13 सीटों से कोई भाजपा नेता सांसद नहीं पहुंचा। हालांकि इसमें से 10 सीटें ऐसी रही हैं, जिनपर भाजपा ने कभी कोई उम्मीदवार उतारा ही नहीं है। इन 10 सीटों पर हमेशा भाजपा अपने सहयोगियों के भरोसे रही है। जबकि सुपौल, मधेपुरा और बांका सीट पर भाजपा ने 2014 में अपनी किस्मत आजमाई थी लेकिन जीत नहीं मिली। इसमें सुपौल और मधेपुरा में तो भाजपा के उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे थे। जबकि बांका में भाजपा उम्मीदवार को दूसरा स्थान मिला था।
- सीतामढ़ी : यहां अभी तक आजादी के बाद से 16 चुनाव हुए हैं। 16 चुनावों में भाजपा के पास कभी भी यह सीट नहीं रही है। जबकि राजद और जदयू के उम्मीदवारों ने 2-2 बार यह सीट जीती है। जबकि कांग्रेस को 1957 से 1984 के बीच 5 बार जीत मिली है। हालांकि पिछले बार इस चुनाव में जदयू के टिकट से जीते सांसद सुनील कुमार पिंटू पहले भाजपा के विधायक थे।
- सुपौल : यह सीट 2008 के बाद अस्तित्व में आई है। अब तक हुए तीन चुनावों में दो बार जदयू को यह सीट मिली है जबकि एक बार यह सीट कांग्रेस ने जीती है। भाजपा ने यहां से एक बार लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार उतारा था, लेकिन तीसरे नंबर पर पार्टी रही थी। 2014 में कांग्रेस की रंजीत रंजन यह सीट जीती थी जबकि भाजपा उम्मीदवार कामेश्वर चौपाल तीसरे नंबर पर रहे थे।
- मधेपुरा : राजद का गढ़ माना जाने वाली मधेपुरा सीट पर 1967 से 2019 तक 16 चुनाव हुए हैं। इसमें राजद के उम्मीदवार को 4 चुनावों में जीत मिली है। जबकि जदयू के उम्मीदवारों ने दो बार यह सीट जीती है। कांग्रेस के पास यह सीट 1984 तक तीन बार आई है। भाजपा ने 2014 में यहां से विजय कुमार सिंह को उतारा था। तीसरे नंबर पर रहे विजय को 24.4 फीसदी वोट मिले थे।
- वैशाली : इस सीट पर भाजपा को कभी जीत इसलिए भी नहीं मिली क्योंकि हमेशा इस सीट पर सहयोगियों ने उम्मीदवार उतारे। कभी जदयू, कभी लोजपा के उम्मीदवार भाजपा के सहयोगी के तौर पर चुनावी मैदान में आए। पिछले दो चुनावों से यह सीट लोजपा के उम्मीदवारों ने जीती है। जबकि उसके पहले के पांच चुनावों में लगातार राजद नेता स्वर्गीय रघुवंश प्रसाद सिंह ने जीत दर्ज की थी।
- हाजीपुर : वैशाली की तरह ही हाजीपुर सीट पर भी भाजपा कभी अपना उम्मीदवार नहीं उतार सकी है। हमेशा उसके सहयोगियों ने ही यहां से चुनाव लड़ा है। कुल 16 चुनावों में पांच तो कांग्रेस ने जीते हैं। लेकिन 1984 के चुनाव के बाद कांग्रेस हाजीपुर में अप्रासंगिक हो गई। 2004 से यह सीट जदयू और लोजपा के पास ही रही है।
- समस्तीपुर : हाजीपुर और वैशाली की तरह समस्तीपुर भी ऐसी ही सीट है, जहां भाजपा अपना समर्थन चेक ही नहीं कर पाई है। लोजपा ही पिछले तीन चुनावों में यह सीट जीती है। जबकि 2009 में जदयू ने यह सीट जीती थी। यह अलग बात है कि इन चारों चुनाव में जीत करने वाले उम्मीदवारों को भाजपा का समर्थन था।
- खगड़िया : भाजपा इस सीट भी अपनी किस्मत कभी आजमा नहीं पाई है। अब तक सहयोगियों को ही यह सीट देती रही भाजपा ने खगड़िया सीट पर कभी अपने सिम्बल पर उम्मीदवार नहीं दिया है। हालांकि बीते तीन चुनावों में भाजपा समर्थित उम्मीदवार ही जीते हैं।
- बांका : 1957 से इस सीट पर अब तक कुल 20 चुनाव हुए हैं, जिसमें चार उपचुनाव शामिल हैं। सबसे अधिक चुनावों वाली इस सीट पर भाजपा कभी नहीं जीती। हालांकि भाजपा ने सिर्फ 2014 में पुतुल कुमारी को उम्मीदवार बनाया था, जिन्हें राजद के जय प्रकाश नारायण यादव ने हरा दिया था। अभी वहां से जदयू के गिरधारी यादव सांसद हैं।
- मुंगेर : जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह की संसदीय सीट मुंगेर में भी भाजपा कभी नहीं जीती। वैसे भाजपा यहां से कभी लड़ी भी नहीं है। जदयू के साथ गठबंधन रहा तो यह सीट भाजपा ने जदयू को दी है। जदयू से टूटने के बाद यह सीट लोजपा के खाते में गई है।
- नालंदा : इस सीट से 2004 में नीतीश कुमार सांसद रहे हैं। यह सीट भी भाजपा के लिए अबूझ पहेली है। शायद यही कारण है कि इस सीट से कभी भाजपा ने अपना उम्मीदवार उतारने के लिए सोचा भी नहीं। 1996 से ही यह सीट समता पार्टी और जदयू के पास रही है। 2014 में भी भाजपा ने यहां से अपना उम्मीदवार नहीं दिया था।
- काराकाट : 2008 के बाद अस्तित्व में आई काराकाट सीट पर भाजपा के सहयोग से उसके सहयोगी जीतते रहे हैं। 2009 और 2019 में जदयू के महाबली सिंह को जीत मिली थी। जबकि 2014 में जदयू और भाजपा अलग लड़े थे तो भाजपा ये सीट उपेंद्र कुशवाहा को दे दी। तब कुशवाहा इस सीट पर जीते थे।
- जहानाबाद : कभी वाम दल सीपीआई का गढ़ रहे जहानाबाद में भाजपा को न आसरा मिला और न ही जीत। भाजपा अभी तक के हुए 16 चुनावों में कोई उम्मीदवार नहीं उतार सकी है। 6 बार इस सीट पर सीपीआई के उम्मीदवार जीते हैं। लेकिन 1996 के बाद स्थिति बदल गई। तब से हुए 6 चुनावों में दो बार राजद, दो बार जदयू और एक बार रालोसपा ने जीत दर्ज की।
- जमुई : सुरक्षित सीटों में सबसे अधिक चर्चा में रहती है जमुई सीट, जहां के सांसद चिराग पासवान हैं। भाजपा ने कभी इस सीट पर अपनी किस्मत नहीं आजमाया।