लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भाजपा ने एक साथ 195 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी। इसमें 17 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों की 195 सीटें शामिल थीं। बड़े राज्यों यानि सबसे अधिक सीटों वाले 4 राज्यों में से यूपी में 51 और पश्चिम बंगाल में 20 सीटों पर भाजपा ने प्रत्याशियों की घोषणा की। जबकि सीटों के हिसाब दूसरे नंबर के बड़े राज्य महाराष्ट्र और चौथे नंबर के बिहार में सीटों की घोषणा नहीं हुई। जबकि दोनों राज्यों में एनडीए की सरकार है। बिहार की बात करें तो यहां 40 सीटें हैं, जिसमें 39 सीटें 2019 के चुनाव में एनडीए के खाते में गई थीं। इस बार भाजपा और एनडीए के नेताओं का नारा सभी 40 सीटें जीतने का है। लेकिन इन 40 सीटों में भाजपा के पास 80 चुनौतियां हैं। चुनौतियों की गिनती पर जाने से ज्यादा जरुरी है कि इन चुनौतियों के महत्व को जाना जाए।
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घनचक्कर बन गया गठबंधन का चक्कर
कुछ हफ्ते पहले तक सीटों का बंटवारा इस लिहाज से तय माना जा रहा था कि बिहार की 40 में से कम से कम 30 सीटें भाजपा लड़ेगी। जबकि 10 सीटों या उससे कम में सहयोगियों को समेट दिया जाएगा। लेकिन गठबंधन के नए स्वरूप में जदयू की एंट्री ने भाजपा को घनचक्कर में फंसा दिया है। अब भाजपा 30 सीटें तो किसी हाल नहीं लड़ पाएगी। अपनी सीटें कम करने के साथ जदयू के अलावा जो सहयोगी हैं, उनके पर भी नीतीश कुमार का साथ पाने के लिए कतरने पड़ेंगे।
चिराग-कुशवाहा की बागी चुप्पी
जदयू के एनडीए में आने से सबसे बड़ा झटका चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा को लगा है। चिराग पासवान ने तो अपनी राजनीतिक जमीन ही नीतीश विरोध के आधार पर बनाई है। जबकि उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार को छोड़कर एनडीए में उनकी भरपाई का सपना देख रहे थे। लेकिन नीतीश की एनडीए में वापसी ने चिराग और कुशवाहा दोनों को खामोश कर दिया है। दोनों की चुप्पी बागी तेवरों का अहसास दे रही है। पीएम नरेंद्र मोदी 18 महीने बाद बिहार के दौरे पर आते हैं, सभी सहयोगी दलों के नेता मंच पर दिखते हैं लेकिन चिराग-कुशवाहा वहां से नदारद रहते हैं।
लोकसभा में सीटों का तालमेल उलझा
दरअसल, 2019 के चुनाव में जो सीटों का बंटवारा हुआ था, उसमें जदयू ने 17 सीटों पर चुनाव लड़कर 16 पर जीत दर्ज की थी। तो जाहिर तौर पर जदयू की पहली मांग तो यही है कि पिछली बार की तरह ही उसे सीटें मिलें। लेकिन 2022 में नीतीश के पाला बदलने के बाद जदयू की सीटों पर भाजपा और उसके नेताओं ने जितनी मेहनत की थी, उससे अब इन सीटों को जदयू को देने में दिक्कत हो रही है। भाजपा के नेता जदयू को उसके विधायकों की संख्या के आधार पर सीटें देने की वकालत कर रहे हैं। इस लिहाज से जदयू को 7 से 8 सीटें मिलनी चाहिए। लेकिन जदयू इतने कम सीटों पर मानेगा नहीं, यहीं सबसे बड़ी उलझन फंसी हुई है।
उम्मीदवारों का चयन भी आसान नहीं
बिहार में नया गठबंधन बनने से पहले की चर्चाओं के मुताबिक गिरिराज सिंह, राधामोहन सिंह, रविशंकर प्रसाद, राजीव प्रताप रूडी, रमा देवी, रामकृपाल यादव जैसे सांसदों के टिकट रिपीट होने में शंका थी। लेकिन बदली परिस्थिति में भाजपा अपने इन सूरमाओं को संभाले या जदयू व दूसरे सहयोगी दलों से सामंजस्य बिठाए, यही मुश्किल लगातार अड़ी हुई है।