बिहार में कांग्रेस अपना वजूद खोती जा रही है। 1990 से ही कांग्रेस में गिरावट का दौर शुरू हुआ, आज भी कायम है। 2005 के बाद तो सांसदों की संख्या तो दूर, विधायकों पर भी लाले पड़ गए थे। 2005 के बाद विधानसभा में कांग्रेस का बेस्ट प्रदर्शन 2015 का रहा है। तब कांग्रेस ने 27 सीटें जीती थी। लेकिन जिस डॉ. अशोक चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष रहते कांग्रेस ने यह कारनामा किया था, वो जदयू में जा चुके हैं।
चार साल से प्रदेश अध्यक्ष हैं डॉ. मदन मोहन झा
कांग्रेस के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा हैं। चार साल से उनके नेतृत्व में ही बिहार कांग्रेस चल रही है। एक विधानसभा चुनाव और एक लोकसभा चुनाव लड़ा गया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट मिली। जबकि 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में 19 सीटें। फिलहाल कांग्रेस अपना नया प्रदेश अध्यक्ष ढूंढ़ रही है। चर्चाओं में कई नाम हैं। लेकिन हम आपको वो पांच नाम बता रहे हैं। इन्हीं में से एक नाम पर सहमति बननी तय है।
रंजीता रंजन :
बिहार की राजनीति में रंजीता रंजन का नाम पुराना है। पूर्व सांसद हैं। संसद में खुलकर बोलती हैं। संसद के बाहर भी उनकी छवि को लेकर कोई संदेह नहीं है। इसके अलावा प्रियंका गांधी के पार्टी में महिलाओं को अधिक भागीदारी देने वाले फार्मूले में भी रंजीता रंजन फिट बैठती हैं। इसलिए प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में उनके नाम की चर्चा हो रही है।
मो. जावेद :
किशनगंज के कांग्रेसी सांसद मो. जावेद पार्टी के अल्पसंख्यक चेहरे के तौर पर उभरे हैं। 2019 में जहां मोदी लहर में लालू यादव की राजद भी कोई सीट नहीं जीत सकी, कांग्रेस को शून्य पर आउट होने से मो. जावेद ने बचा लिया। 2019 में मो. जावेद को मिली जीत ने महागठबंधन को बिहार से मिली इकलौती जीत थी। ऐसे में उन्हें आगे कर पार्टी अल्पसंख्यकों को एक बार फिर अपने पाले में करने का प्रयास करेगी, जो अभी राजद के खेमे में है।
तारिक अनवर :
एनसीपी छोड़ने के बाद कांग्रेस में लौट चुके हैं तारिक अनवर। लेकिन चुनाव हार गए। इसके लालू-नीतीश की बराबरी का दम तारिक अनवर में आज भी है। पूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं तो काम का अनुभव उन्हें है। बड़ा नाम भी हैं और उनके नाम पर कांग्रेस में सिर फुटौव्वल की आशंका कम रहेगी। अध्यक्ष पद को लेकर परेशानी न हो, यह कांग्रेस की प्राथमिकता रहेगी। इसलिए तारिक अनवर का नाम भी चर्चा में है।
अखिलेश सिंह :
पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह लगातार पार्टी में अपना कद उंचा करने का प्रयास कर रहे हैं। जाति से भूमिहार अखिलेश सिंह को आगे कर कांग्रेस नाराज सवर्णों को अपने पाले में जोड़ने का प्रयास भी कर सकती है। लेकिन अखिलेश सिंह के नाम पर आम सहमति बनना मुश्किल ही है। इसके बावजूद उनके नाम की चर्चा है क्योंकि अखिलेश सिंह का कद पार्टी में बड़ा है।
राजेश राम :
औरंगाबाद के कुटुम्बा से कांग्रेस विधायक राजेश राम बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सबसे अधिक चर्चा में हैं। राजेश राम को अध्यक्ष बनाने के पीछे उनकी जाति तो है ही, कांग्रेस के प्रति उनकी वफादारी भी बड़ा कारण है। पुराने कांग्रेसी हैं। उनके अध्यक्ष बनने से कांग्रेस उस दलित वोट बैंक को साधने का प्रयास कर सकती है, जिस पर अभी दावे तो कई हैं लेकिन उन पर किसी का एकाधिकार नहीं है।
राजेश राम का दावा सबसे मजबूत
इन पांचों में से राजेश राम का दावा सबसे मजबूत बताया जा रहा है। कांग्रेस पार्टी के सूत्र बता रहे हैं कि राजेश राम बिहार प्रभारी की भी पसंद हैं और पार्टी आलाकमान भी उनको लेकर सकारात्मक है। लेकिन इतिहास गवाह है कि बिहार कांग्रेस की दुर्गति में उसकी अंदरुनी गुटबाजी का योगदान सबसे अधिक रहा है। गुटबाजी गाहे-बगाहे सार्वजनिक होती रहती है। इसलिए पटना में कांग्रेस की नैया संभालने को आतुर सभी संभावित खेवैया दिल्ली में फील्डिंग मजबूत कर रहे हैं।