हर चुनावी माहौल में बिहार में जननायक (Jannayak) कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) का नाम जरूर गूंजता है। पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद (Lalu Prasad) और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) खुद को कर्पूरी का शिष्य बताते हैं। इनके नाम पर वोट की मांग करते हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा ने कर्पूरी ठाकुर पर अब तक का सबसे बड़ा दांव खेला है। केंद्र सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा कर दी है। यह तो स्पष्ट है कि प्रदेश के एकमुश्त 36 प्रतिशत से अधिक अति पिछड़े वोट बैंक के प्रति सबका साथ-सबका विकास एवं मोदी की गारंटी जैसी पहल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रमाणिक कर दिया है।
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने से धन्य हुआ बिहार : प्रो. रणबीर नंदन
भारत रत्न देना दूरगामी रणनीति
जननायक की जन्मशताब्दी की पूर्व संध्या पर लोकसभा चुनाव की दृष्टि से भी यह घोषणा सधा हुआ बड़ा दांव है। दो दशक तक बिहार की राजनीति में सामाजिक न्याय के प्रणेता रहे और अति पिछड़े समुदाय के पहले मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को सर्वश्रेष्ठ सम्मान भारत रत्न देना भाजपा की दूरगामी रणनीति है। खास बात है कि 1988 से कर्पूरी को भारत रत्न देने की आवाज बुलंद होती रही, लेकिन किसी प्रधानमंत्री ने इस पर ध्यान नहीं दिया। गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री वीपी सिंह, चंद्रशेखर, एचडी देवेगौड़ा एवं इंद्र कुमार गुजराल ने भी अनदेखी की।
लालू ने नहीं दिया कभी ध्यान
1990 से 2005 तक राजद प्रमुख लालू यादव बिहार से केंद्र की राजनीति में अहम हिस्सा रहे, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया। तत्कालीन जनसंघ (अब भाजपा) के सहयोग से कर्पूरी ठाकुर बिहार में दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उप मुख्यमंत्री रहे थे। अब यह तय है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा इसे भुनाएगी। पहले आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण, संसद में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण और अब भारत रत्न का दांव अहम है।
चुनाव से पहले ही विपक्ष को पटखनी की कोशिश
सीएम नीतीश कुमार कई मौकों पर कर्पूरी ठाकुर के लिए ‘भारत रत्न’ की मांग किए हैं। कर्पूरी ने कई ऐसे फैसले लिए, जो न सिर्फ बिहार में, बल्कि देश में मिसाल बने। कर्पूरी ने सबसे पहले पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया था। सबसे पहले महिलाओं और आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को तीन-तीन प्रतिशत आरक्षण देने का श्रेय भी उनको जाता है।