परिवारवाद बिहार की राजनीति की एक कड़वी सच्चाई है। जिसे नकारा नहीं जा सकता है। ऐसा नहीं है सिर्फ बिहार की राजनीति में ही परिवारवाद का असर है, कई अन्य राज्य में भी इसका प्रभावी असर देखने को मिलता है। परिवारवाद पर हमला करने वाली भाजपा भी जब बिहार की राजनीति में आती है तो उसके दामन पर भी परिवारवाद का दाग लगना निश्चित है। दरअसल इनदिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का परिवारवाद को लेकर दिया गया एक बयान खुब चर्चा में हैं। जिसमें उन्होंने कई दलों का नाम लेकर बताया कि यदि इन दलों को वोट दोगे, तो दलों के नेताओं के बच्चों को इसका फायदा मिलेगा।
मतलब साफ है कि 2024 की लड़ाई में भाजपा एक बार फिर परिवारवाद को हथियार बनाना चाहती है। लेकिन बिहार में कई ऐसे छोटे दल है, जिनका गठबंधन भाजपा के साथ है या आने वाले दिनों में होने की संभावना है। ये दल गले तक परिवारवाद में डूबे हुए हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि परिवारवाद को मुद्दा बनने वाली भाजपा अपने दामन पर लगे दाग को कैसे छुपाएगी?
पुत्रमोह में चूर जीतन राम मांझी का साथ
हाल ही में जीतन राम मांझी की पार्टी का हम(सेकुलर) का भाजपा के साथ गठबंधन हुआ है। मांझी की पार्टी हम में भी परिवारवाद का पूरा असर देखने को मिलता है। बिहार विधानमंडल में हम के पांच सदस्य हैं। जिसमें तीन तो मांझी के परिवार से हैं। पहला नाम जीतन राम मांझी का है, दूसरा मांझी के बेटे संतोष सुमन मांझी का है, वहीं तीसरा मांझी की समधिन ज्योति देवी का है। पार्टी के भी सभी बड़े पद मांझी परिवार के पास ही है।
जीतनराम मांझी पार्टी के संस्थापक संरक्षक है। उनका बेटा संतोष सुमन मांझी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जबकि जीतन राम मांझी के दामाद देवेंद्र मांझी और समधिन ज्योति देवी राष्ट्रीय कार्यकारणी के अहम पदों पर भी हैं। जीतन राम मांझी का पुत्र मोह भी कई बार खुल कर सामने आ चुका है। कई बार वो अपने बेटे संतोष सुमन मांझी को बिहार के मुख्यमंत्री के लिए योग्य उम्मीदवार भी बता चुके हैं।
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पासवान परिवार और BJP
दिवंगत नेता रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी पार्टी लोजपा के साथ क्या हुआ ये सभी को पता है। परिवारवाद और पार्टी पर अपने वर्चस्व की लड़ाई में लोजपा के दो गुटों में बंट गई। एक गुट चाचा पशुपति पारस वाला है, जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष उन्ही के भतीजे प्रिंस पासवान हैं। दूसरा गुट पारस के भतीजे और रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान का है। इन दोनों गुटों के बनने के नींव ही परिवारवाद है। पशुपति पारस वाला गुट भाजपा के साथ है। वही भाजपा से चिराग की नजदीकियां भी किसी से छुपी नहीं है। ऐसा माना जा रहा कि आने वाले दिनों में चिराग वाले गुट का भी भाजपा के साथ गठबंधन होगा। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि परिवारवाद पर भाजपा मुखर रूप से हमला बोलगी या फिर अपने सुर में बदलाव करेगी।
परिवारवाद की तरफ सहनी के बढ़ते कदम
बिहार में नई तरह की राजनीति का दावा करने वाले मुकेश सहनी भी परिवार वाद की तरफ अपने कदम बढ़ा रहे है। उन्होंने अपने छोटे भाई संतोष सहनी को विकासशील इंसान पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया है। बता दें कि जिस समय मुकेश सहनी बिहार सरकार में पशुपालन एवं मत्स्य विभाग में मंत्री से उस समय उनके भाई से जुड़ा एक विवाद बहुत चर्चित हुआ था। बात मार्च 2021 की है जब हाजीपुर में एक विभागीय कार्यक्रम का उद्घाटन मंत्री के तौर पर मुकेश सहनी को करना था।
लेकिन मुकेश सहनी की अनुपस्थिति में उनके भाई संतोष सहनी ने इसका उद्घाटन कर दिया था। हालांकि अभी मुकेश सहनी ने भी अपने पत्ते खोले नहीं है कि उनकी पार्टी का गठबंधन किसके साथ होगा। लेकिन उनका झुकाव भी भाजपा की तरफ है। अब इन दलों के साथ भाजपा का गठबंधन हुआ तो उसे परिवारवाद के खिलाफ बोलने से बचाना होगा, नहीं तो वो अपने ही फैलाए जाल में फंस जाएगी।