बिहार में जातीय जनगणना का मुद्दा फिर गरमाया हुआ है। आए दिन सत्तारूढ़ी दल के नेता ही आपस में लड़ रहे हैं। बयानबाजी में न जदयू पीछे हट रही, न बीजेपी उसे छोड़ रही है। ऐसे में यह मुद्दा बीजेपी-जदयू की दोस्ती को दुश्मनी में न बदल दे। बिहार के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जातीय जनगणना महज मुद्दा नहीं, दोनों पार्टियों की प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। मुख्यमंत्री एवं जदयू नेता नीतीश कुमार जातीय जनगणना कराकर ही रहने की बात कह रहे हैं, वहीं उप मुख्यमंत्री एवं बीजेपी नेता रेणु देवी आए दिन इसकी जरूरत नहीं बता रहीं हैं।
कैबिनेट से जातीय जनगणना को मंजूरी दिलाने की तैयारी में नीतीश
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को जातीय जनगणना पर सबसे बड़ी प्रतिक्रिया दी। कहा कि जातीय जनगणा का प्रस्ताव दो बार बिहार विधानसभा में पारित किया जा चुका है। अब इसे कैबिनेट के जरिए मंजूरी दी जानी है। इस पर काम भी शुरू कर दिया जाएगा। अब यही तरीका है जातीय जनगणना कराने का। हालांकि यह भी कहा कि सभी दलों के लोगों के साथ चर्चा की जाएगी। कई बार विचार-विमर्श हुआ भी है।
राजद की सहमति से जदयू को बल
जातीय जनगणना कराने के पक्ष में राजद भी है। पिछले एक साल से नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव एवं राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह कह रहे हैं कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर वह नीतीश के साथ हैं। नीतीश को पीछे हटने की जरूरत नहीं है। निश्चित तौर पर जदयू के लिए यह बड़ा सपोर्ट है। क्योंकि बिहार में राजद दूसरे नंबर की पार्टी है और जदयू एक बार उनके साथ मिलकर सरकार भी बना चुकी है।
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